वरिष्ठ साहित्यकार श्री ओम पुरोहित 'कागद' जी रो राजस्थान रै सांसदा नै कागद

घणां मानीता अनै आदरजोग सांसद सा ,

                 जय राजस्थानी-जय राजस्थान !
 

               आप उण रजस्थान रा घणां हेताळू अनै म्होबी सांसद हो जिण री मायाड़ भाषा राजस्थानी है ! आप ओ भी जाणो हो कै राजस्थान रो नांव ई राजस्थानी भाषा रै ताण थरपीज्यो हो ! आज आज़ादी रै ६३ सालां बाद भी १३ करोड़ राजस्थानी आपरी मायड़ भाशा राजस्थानी री राजमानाता सारू बिलखै ! आपां दुनियां री लूंठी भाषा रा मालक होंवता थकां ईं ग्राम पंचायत सूं लेय’र संसद तांई में आपरी मायड़ भाषा राजस्थानी में नी बोल सकां ! आज़ादी सूं लेय’र हाल तांईं अबोला हां ! आपणी जुबान माथै ताळो है ! संसद में बोलण री दरकार है कै " सगळी भाषावां नै मानता-म्हानै टाळो क्यूं-म्हारी जुबान पर ताळो क्यूं  ?"आप सूं आस है कै आप संसद रै शीतकालीन सत्र में आ बात जोरदार ढंग सूं उठास्यो अनै राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण री मांग मनवास्यो !             
               आपणी मायड भाषा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण सारू  राजस्थान में चाल रैयै आंदोलन सूं आप आच्छी तरियां परिचित हो ! आप राजस्थान में इण पैटै जगरुकता रा पड़तख गवाह भी हो !राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में नीं भेळण सूं होवण आळा घाटा भी आप सूं छाना नीं है ! आज आखो राजस्थान आपणी मायड भाषा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में नीं भेळण रै दुख सूं कितरो दुखी है-आ बात भी आप सूं छानी नीं है ! पूरै देश रा टाबर आपरी मायड भाषा में शिक्षा ले रैया है पण राजस्थान रा टाबर कित्ता निरभागी है कै दुनियां री ऐक लूंठी भाषा रा मालक होंवता थकां परभाषा में प्राथमिक शिक्षा लेवण नै मज़बूर है ! अब "नि:शुल्क एवम अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा अधिनियम" रै आयां तो ओ और भी लाजमी होग्यो कै राजस्थान रा टाबर भी आपरी मायड़ भाषा राजस्थानी में प्राथमिक शिक्षा लेवै ! पण लेवै तो कीयां लेवै ? हाल आपणी मायड़ भाषा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में नीं भेळीजी है ! आप तो जाणो ई हो कै इण बिना आ बिद नीं बैठै सा !
                 आप राजस्थान रा अर राजस्थानी भाषा रा म्होबी बेटा हो ! आप सूं आपरी मायड़ भाषा राजस्थानी आस राखै कै आप उण री आन-बान-स्यान सारू खेचळ जरूर करस्यो । आपरै छेतर  रा लोग भी आस राखै कै आप उणां नै उणां री ज़ुबान दिरावस्यो ! आप नै ध्यान ई है कै राजस्थान विधान सभा सूं मानजोग अशोक जी गहलोत सा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण रो प्रस्ताव सर्वसम्मति सूं पारित कर लोकसभा में पारित करण सारू केन्द्र सरकार नै भेजियो हो । बो प्रस्ताव बठै लारला सात बरस सूं रुळै है !
आप सूं अरज़ है कै आप मानजोग प्रधानमंत्री जी अर गुहमंत्री जी सूं मिल परा बेगै सूं बेगो राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण सारू संविधान संषोधन विधेयक ल्यावण री ताकीद करो सा !
राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळीज्यां आपरो जस सवायो अनै ऊजळो होसी सा !

आपरो इज हेताळु

ओम पुरोहित"कागद"
२४-दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ संगम-३३५५१२
मोबाइल-०९४१४३८०५७१
 
Email:omkagad@gmail.com

मायड भाषा रा दूहा

मायड भाषा रा दूहा

राजस्थानी भाषा


राज बणाया राजव्यां,भाषा थरपी ज्यान ।
बिन भाषा रै भायला,क्यां रो राजस्थान ॥१॥

रोटी-बेटी आपणी,भाषा अर बोवार ।
राजस्थानी है भाई,आडो क्यूं दरबार ॥२॥

राजस्थानी रै साथ में,जनम मरण रो सीर ।
बिन भाषा रै भायला,कुत्तिया खावै खीर ।।३॥

पंचायत तो मोकळी,पंच बैठिया मून ।
बिन भाषा रै भायला,च्यारूं कूंटां सून ॥४॥

भलो बणायो बाप जी,गूंगो राजस्थान ।
बिन भाषा रै प्रांत तो,बिन देवळ रो थान॥५॥

आजादी रै बाद सूं,मून है राजस्थान ।
अपरोगी भाषा अठै,कूकर खुलै जुबान ॥६॥

राजस्थान सिरमोड है,मायड भाषा मान ।
दोनां माथै गरब है,दोनां साथै शान ॥७॥

बाजर पाकै खेत में,भाषा पाकै हेत ।
दोनां रै छूट्यां पछै,हाथां आवै रेत ॥८॥

निज भाषा सूं हेत नीं,पर भाषा सूं हेत ।
जग में हांसी होयसी,सिर में पड्सी रेत ॥९॥

निज री भाषा होंवतां,पर भाषा सूं प्रीत ।
ऐडै कुळघातियां रो ,जग में कुण सो मीत ॥१०॥

घर दफ़्तर अर बारनै,निज भाषा ई बोल ।
मायड भाषा रै बिना,डांगर जितनो मोल ॥११॥

मायड भाषा नीं तजै,डांगर-पंछी-कीट ।
माणस भाषा क्यूं तजै, इतरा क्यूं है ढीट ॥१२॥

मायड भाषा रै बिना,देस हुवै परदेस ।
आप तो अबोला फ़िरै,दूजा खोसै केस ॥१३॥

भाषा निज री बोलियो,पर भाषा नै छोड ।
पर भाषा बोलै जका,बै पाखंडी मोड ॥१४॥

मायड भाषा भली घणी, ज्यूं व्है मीठी खांड ।
पर भाषा नै बोलता,जाबक दीखै भांड ॥१५॥

जिण धरती पर बास है,भाषा उण री बोल ।
भाषा साथ मान है , भाषा लारै मोल ॥१६॥

मायड भाषा बेलियो,निज रो है सनमान ।
पर भाषा नै बोल कर,क्यूं गमाओ शान ॥१७॥

राजस्थानी भाषा नै,जितरो मिलसी मान ।
आन-बान अर शान सूं,निखरसी राजस्थान ॥१८॥

धन कमायां नीं मिलै,बो सांचो सनमान ।
मायड भाषा रै बिना,लूंठा खोसै कान ॥१९॥

म्हे तो भाया मांगस्यां,सणै मान सनमान ।
राजस्थानी भाषा में,हसतो-बसतो रजथान ॥२०॥

निज भाषा नै छोड कर,पर भाषा अपणाय ।
ऐडै पूतां नै देख ,मायड भौम लजाय ॥२१॥

भाषा आपणी शान है,भाषा ही है मान ।
भाषा रै ई कारणै,बोलां राजस्थान ॥२२॥

मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला,सूनो लागै थार ॥२३॥

जिण धरती पर जळमियो,भाषा उण री बोल ।
मायड भाषा छोड कर, मती गमाओ डोळ ॥२४॥

हिन्दी म्हारो काळजियो,राजस्थानी स ज्यान ।
आं दोन्यूं भाषा बिना,रै’सी कठै पिछाण ॥२५॥

राजस्थानी भाषा है,राजस्थान रै साथ ।
पेट आपणा नीं पळै,पर भाषा रै हाथ ॥२६॥
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घणी घणी राम राम सा....

राम राम सा,

म्है आप सबसूं माफ़ी चावूं कै लारला कई दिन सूं म्है इन्टरनेट पर कोई हलचल नी करी, कारण ओ हो कै म्है जयपुर में भणाई खातर चल्यो गयो हो. आज सूं लगातार सात दिन तक म्है आपरै बीच अठै इज रेस्यूं. नयो माजनो ले'र हाजर होस्युं.

आपरो
अजय कुमार सोनी
परलीका

राजस्थान रौ भविष्य कांई?

आखी दुनिया मानै कै राजस्थानी भासा इण धरती री सबसूं विशाळ साहित्यक भासा है. तमिल अर राजस्थानी दो भासा एड़ी है जिणनै अगर भारत मांय राष्ट्रभासा रौ दरजौ देरीजै तौ ईं कम है.

राजस्थान रै तीन विद्यापिठां (Universities) जोधाणा, बिकाणा अर उदैपर मांय इणनै भणावै अर साथै साथै प्राईवेट इंस्टिट्यूट वाळा ईं भणावै. राजस्थानी री भणाई आप अमेरीका, ब्रिटेन या रुस मांय कर सकौ.

राजस्थानी भासा नै अमेरीका मांय ओफिसियल भासा (राजभासा) रौ दरजौ मिळ्यौड़ौ है साथै साथै संयुक्त राष्ट्र मांय ई इण भासा नै मानता है. आप अमेरीका मांय राजस्थानी मांय अरजी दे सकौ या कोई काम काज करवा सकौ, पण राजस्थान सरकार या आपणी भारत सरकार एड़ौ करणीया नै देसद्रोही (हिंदी विरोधी) मानै अर एड़ा मिनख री अरजी ना मंजुर करिजै इण तर्क रै माथै कै इण भासा नै सांवैधानीक मान्यता कोनीं. आप संयुक्त राष्ट्रसंघ (United Nations) मांय राजस्थानी मांय बोल सकौ पण राजस्थान री विधान सभा मांय राजस्थानी बोलण सूं रोकीजै.

कित्तौ बरदास्त करांला.. आपणां खुद रा नेता आपणी भासा बोलता संकौ करै.

विरभुमी राजस्थान, जठै मरणै नै तैवार मानीजै उण धरती रै लोगां नै औ कांई व्है ग्यौ ??
क्यूं अठै रा लोगां रौ रगत पाणी बण ग्यौ ?

क्यूं राजस्थान रा विर सुरमा हिजड़ा बण ग्या ?

सोचो, कांई आपणौ भविष्य है... सब जागा अंधारौ इज अंधारौ देखीजै.

- हनवंतसिंघ राजपुरोहित

नाम री भूख रेई है अब बाकी

नाम री भूख रेई है अब बाकी

राजस्थानी नै आज मानता नीं मिलण सूं माँ मरुवाणी आज घणी दुखी है. सबसूं ज्यादा दुखी है आं निकरमा, निबला पूतां सूं. कूंट में बड़-बड़ घणी रोवै. पण बा मां में सोचै कै ऐ पूत जाम तो दिया पण ऐ आपरो इज नुकसान करसी. माँ मरुवाणी बेठी देखै अर रोवै आरां करमां नै. बी नै ध्यान है कै ऐ अब ज्यादा दिन नी जीसी, पण ऊपर जायनै के मुंडो दिखासी. बिज्जी, मालचंद तिवाड़ी, लक्ष्मीनारायण जी रंग जिस कई मिनख ऊपर जाय केसी के म्हे ओ काम करयो. भगवन खुद करम ठोकने केसी कै थे लोगां थारी मां रो मां नी करयो, थारी राजस्थानी खातर थे कीं नी करयो. दूजी भाषावां खातर थे मरण पड्या पण थे थारी माँ री इज्जत रो ख्याल नीं राख्यो. आ लोगां नै भगवन कुम्भीपाक नरक देसी. पण म्है भी ऊपर जाय के मुंडो दिखास्यान के म्हे बारां इ वंसज हा. अरै सूत्या मिनखो, जागो थारी माय थारै आँगन में खड़ी पुकारै कै-

जाग-जाग लाडेसर जाग
मां रो काज संवारण जाग
मनै जाण जलम री डाटा
मातभोम बस असली माता
सारो काज संवारण जाग
जाग-जाग लाडेसर जाग!

सजळ नैण तेरी माय खड़ी है
दुःख री बेदी पाँव पड़ी है
तैं पर उणरी आस पड़ी है
मां रो दुःख हटावण जाग
जाग-जाग लाडेसर जाग!

बिज्जी, मालचंद जी, लक्ष्मी नारायण जी आप जागो अर महा जिसा नौजवानां रै तिल्लो लगाओ जिंसूं म्है जग उठां अर मानता ले'र बावड़ा. अब भी जाग्सो तो थारी जय-जैकार व्हेसी. नीं जाग्य तो थानै बदआशीष दियो जासी.
जय राजस्थान!
जय राजस्थानी!!

क्यूं थारी गोमा गाजै रै?

क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
आजाद देश है थांरौ!
फैरूं थांरी किण सूं फाटै रै?
अबै नीं तो ठाकर रैया,
नीं रैयी वा ठकराई
नी रैया वै पातसाह,
नीं रैयी लाटसाही।
राजसाही रूळगी लोकराज में
फैर क्यांरौ संको रै?
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
ओ राज लोक रौ!
लोकां रौ!
लोकां रै सारू!
वोटां री मसीनां सूं
बणै मंतरी जद अठै
जात रै आरक्षण सूं
संतरी जद बणै अठै
पांत में दूभांत री
बात करै क्यूं अठै?
मामै रौ ब्यांव, मा पुरसगारी,
फैर क्यांरी अड़कांस रै
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
वोटां री मसीनां सूं
बण्यौ मंतरी,
केई पीढयां तार देवै!
जात रै जबकै अधबुढो
राज री चाकरी री वार चढै
मर ज्यावै अेकर तो
बेटा जी फैरूं असवार बणै।
इतरी आजादी इण राज में
फैर क्यूं कसमसावै रै?
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
इयां डरती जै मांवा थांरी
कूख कियां हरी व्हैती रै?
जै डरतो बीकाण राव कर्णसिंघ
सनातन धरम धुप ज्यांतौ।
जै डरतो महाराणा प्रताप
जगत सूं सुरापण मिट ज्यांतो।
जै हाकम सूं डरतो पिरथीराज
जगत में प्रताप रौ नांव
खोटो व्है ज्यांतौ।
जै डरतो भगत सिंघ
राज ब्रिटानियां कींकर हिलतो रै?
जै डरतो सुभास बाबु
गोरां री मनचाही व्है जाती।
वै डिगया नीं जद गोरां रै सांमी
थै इण छक्कां सूं क्यूं
आंख लुकावौ रै?
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?


विनोद सारस्वत, बीकानेर




राजस्थान रा लूण हराम

इयूं तौ आखै आर्याव्रत मांय थांनै लूण हरामीयां रा घणां नांव मिळै ज्यूं कै आमेर रौ राजा मानसिंघ इत्याद. पण अठै आपां बात करां लारला 100 सुं 150 बरसां मांय राजस्थान रै सागै लूण हरामी करण वाळा भारत रै इतिहास मांय महान गिनीजन वाळा लोगां री. आ बात तौ सगळा जाणै कै भारत सरकार री पोथीयां मांय छत्रपती शिवाजी नै त्रासवादी अर अकबर नै महान केवीजै.
आवां आपां जाणा अबार रा लूण हरामी. थोड़ा घणा तौ राजस्थान रा पण दूजा अेड़ा जिणा रौ राजस्थान सूं कांई लेणौ देणौ कोनीं पण लूण हरामी करण मांय सगळां नै लारै बैठावै. माफी चावूं सगळां सूं क्यूं कै थे अबार घणकरा अेड़ा नांव सुणौला ज्यांरी थे सुपणां मांय ईं कळ्पणा नी कर सकौ, पण हकीकत बतावणी म्हारौ फरज समझू, घणी खम्मा सा :
  • पं. मदनमोहन मालविय : अचुम्भौ हुवै ? पण हकीकत आ कै पंडितजी बिकाणै (बिकानेर) अर जोधाणै (जोधपुर) रा घणा आंटा मार्‌या अर महाराजा गंगासिंघजी अर महाराजा उमेदसिंघजी सूं काशी हिंदू विश्वविद्यालय मांय राजस्थानी भासा रौ डिपार्टमेंट खोलण रै नांव पर खासा पईसा लूंटिया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय तौ बण्यौ पण राजस्थानी रै वास्तै डिपार्टमेंट तौ कांई इणरौ नांव कै इतिहास ईं दुर-दुर तांई निंगे नीं आवै.
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल : सरदार जी रौ राजपुताना मांय घणौ आवणौ जावणौ रेवतौ. महाराजा उमेदसिंघजी अर गंगासिंघजी जैड़ा दान दाता जकौ बैठ्या हा. कोंग्रेस पार्टी रै वास्तै घणा रुपिया भीख मांय ले जावता. राजपुतानै री आजादी अर इणरी भासा-संस्क्रती री रखवाळी रौ आश्वासन ईं पटेल साब दे ग्या हा. भारत सूं अंगरेजां रै जावता ईं हाथ में दिल्ली री सत्ता मिळ्ता ई असल रंग दिखावणौ चालु कर्‌यौ. पटेल साब घणी कोशिश करी अर अेकवार तौ सिरोही जिल्ला नै गुजरात मांय लेग्या. सिरोही री पिरजा रै विरोध रै बावजुद अंबाजी गुजरात में राख’र आबू तक रौ हिस्सौ राजस्थान नै दियौ अर हर संभव कोशिश करी कै आबु नै गुजरात मांय ले लेवै. गुजरात मांय खुद री मायड़भासा गुजराती रा हिमायती बण्या रह्‌या अर राजस्थानी री राष्ट्रवाद अर देशहित रै नांव पर बळी लेवण मांय पटेल रौ हाथ सबसूं आगै है.
  • इंदिरा गांधी : भारत री प्रधानमंत्री बण’र इण पद रौ घणौ गळत फायदौ उठायौ महाराणी इंदिरा गांधीजी. भारत मांय इमरजेंसी रै लगा’र तानाशाही राज चलावण वाळां मांय हालतांई फक्त अेक नांव आवै अर वौ नांव इंदिरा गांधी रौ. राजपुताना अर देस रै दूजा राज्यां रौ जद भारत मांय विलय कर्‌यौ उण बखत रा विलय पत्र माथै साफ लिख्यौ हौ कै ना तौ भारत सरकार अर ना ईं उण राज्य रौ प्रमुख (राजा) या उणरा उत्तराधिकारी इण विलय पत्र मांय कोई फेर बदळ कर सकै. लोकतंत्र आया पछै ईं हर जागा पिरजा खुद रै राजा नै बोट देवती आज ईं अेड़ा उदारण देखण मांय आवै, ज्यूं कै ग्वालियर, बिकाणौ, जोधाणौ. जद गायत्री देवी री एतिहासिक जीत गीनिज बुक ओफ वर्ल्ड रिकोर्ड मांय आयी तौ इंदिरा गांधी रातौ रात संविधान मांय फेर बदळ करनै सगळा राजावां सू वांरी पदमी, प्राविपर्स सै की खोस लिया. राजपरिवार रै म्हैला उपर छापा नाख’र खजाना लुटिया अर वौ खजानौ कठै गयौ हाल तांई कोई हिसाब कोनीं. अगर विलय पत्र मांय साफ लिख्यौ है कै इण मांय कोई फेरबदळ नीं कर सकै तौ इंदिरा गांधी कुण हुवै फेरबदळ करण वाळी. इंदिरा गांधी री लुण हरामी इतिहास मांय भारत री राजस्थान रै पुठ मांय खंजर मारण वाळी बात रै रुप मांय हमेश जाणीजैला.
  • स्वामी दयानंद सरस्वती : स्वामीजी मूळ रुप सूं गुजराती हा. गुजरात मांय बापड़ौ री दाळ गळी कोनीं अर बार-बार मारवाड़ नरेश रा पांवणा बण’र जोधाणै पुंग जावता. हिंदी रा खासा हिमायती हा अर राजस्थानी रा विरोधी. स्वामीजी गुजरात वाळौ नै तौ हिंदी रौ पाठ पढा कोनीं सक्या पण जोधपुर नरेश सुं हमेश हिंदी नै राजभासा बणावण री वकालत करता रेवता. आखर इण खोटा करमां रै कारण इयूं केविजै के जोधाणै मांय स्वामीजी नै ज्‍हैर देरीजियौ. आज स्वामीजी रा चमचा (चेला) आर्य समाज रै नांव माथै राजस्थानी भासा रै विरोध रौ आंदोलण छेड़ राख्यौ है.
  • जयनारायण व्यास : व्यास जी मारवाड़ राज्य रा प्रधानमंत्री हा. इयांनै प्रधानमंत्री पद ओछौ लागतौ अर एकरकी महाराजा हनवंतसिंघ नै केवै ”बापजी, आप घणौ राज कर्‌यौ इब म्हानै करण दौ”. मारवाड़ रा अे प्रधानमंत्री कोंग्रेस री बातां मांय आय’र खुद रै राज्य सूं लूण हरामी करी अर आखै राजपुतानै रा प्रधानमंत्री बणन रा सुपणा देखण लागा. आ बात न्यारी है कै पेला चुणावां मांय इणांरी जमानत जब्त व्हेगी ही. मारवाड़ राजघराणै सूं संबध राखण वाळा लोग आज ईं आ बात मानै कै महाराजा हनवंतसिंघजी री अपघात मौत मांय व्यासजी रौ हाथ है.!
  • सिंधी समाज : भारत पाकिस्तान रा जद भागला पड्या तौ सिंधी हिंदू समाज नै सिंध छोड़णौ पड़्यौ. पंजाब अर बंगाळ रै ज्यूं सिंध रा दो टुकड़ा नीं करिज्या अर सिंधी समाज रै कनै माथौ ढाकवा नै ईं जगा नीं बची. अेड़ा समै में मारवाड़ नरेश महाराजा हनवंतसिंघजी अर बकनर नरेश महाराजा सार्दुल सिंघजी आगे आया अर सिंधी समाज नै आसरौ दियौ. इण समाज नै राजपुतानै री मारवाड़ रियासत अर बीकानेर रियासत में रेवण नै घर गुवाड़ी अर बिणज वौपर रै वास्तै पुरौ सैयोग राज सूं मिळ्यौ. इण पछे ऐ आज रे राजस्थान में ठोड-ठोड पसरग्या ने आपरो जाचो ज़चा लियो ने लारै जाय’र इण समाज री युनिवर्सिटी अर पोसाळां बणावण वास्तै ईं पुरौ सैयोग दियौ. इण समाज री भासा अर संस्क्रती री रिछपाल करण में राजस्थानी समाज हमेश आगे रैयौ है. इब इण समाज री लूण हरामी आ कै औ समाज राजस्थानी भासा संस्क्रती री रिछपाल री जदै ईं बात निकळै उण समै खुद री टांग सैं सूं पैली अड़ावै. औ समाज आ बात समझण री कोशिश नी करै कै जद सिंध सूं आया उण समै अठै आय’र हिंदी सिखी व्यूंईं राजस्थानी ईं सिखी. सिंध पाकिस्तान मांय रेवण वाळा राजस्थानी भासी ईं हमेश सिंधी नै मान संम्मान दियौ है.

हाल ईं घणां दूजा नांव है, पण फेरू कदै.

जै राजस्थान! जै राजस्थानी!!

- हनवंतसिंघ राजपुरोहित

आ लोगां सूं ना राखो राजस्थानी मानता आन्दोलन में आवण री आस

आ लोगां सूं ना राखो राजस्थानी मानता आन्दोलन में आवण री आस

अजय कुमार सोनी 'मोट्यार'  

राजस्थानी नै मानता दिरावा खातर आज घणा लोग आगै आय रिया है, पण राजस्थानी रा लून्ठा अर समृद्ध साहित्कार लोग आगै तो आय रिया है, पण किण वास्तै? कदी सोच्यो? ऐ आय रिया है राजनीति, नाम खातर. राजस्थान में राजस्थानी नै मानता दिरावा वाला घणा लोग है पण म्हें इश्या लोग कदी नी देख्या. सब रा सब राजस्थानी पुरस्कार, नाम खातर आगै आवै. म्हें आपनै एक तकड़ी बात बताऊँ कै राजस्थानी रा आगिवाण श्री कमल जी रंगा (बीकानेर), आं रै भाई रो बीकानेर में एक स्कुल है. बठै एक खाश बात है कै ऐ लोग कोई भी टाबर नै राजस्थानी नी बोलण देवै. जे कोई उण स्कुल में राजस्थानी बोल भी गयो तो जुर्मानो भरणो पडसी. ऐ लोग फेर क्यूँ मान्यता री बात करै. ऐ लोग टाबरां नै राजस्थानी नीं बोलण देवै. एक उदाहरण ओर देवूं. म्हारै अठै एक स्कुल है, बीं में अंग्रेजी माध्यम सूं पढाई करवाई जावै है. बठै शिक्षा देवै कै "घर पर अंग्रेजी में बात किया करो", बां लोगां नै केवा वालो होणो चाईजे कै दादा-दादी नै पेली अंग्रेजी सिखाओ फेर अंग्रेजी में बात करो. कमल जी रंगा रा पिता जी श्री लक्ष्मी नारायण जी रंगा भी कीं कम नीं है. एल. पी. टेस्सितोरी री समाधि पर बोलण लाग रिया हां. बो भी हिंदी में, बाद में पुछ्यो तो बोल्या कै भाई ३५ साल हिंदी री रोटी खाई है. हिंदी नै कुकर छोड़ देवां. टेस्सितोरी राजस्थानी खातर इत्तो काम कार्यो, विदेशी हा तो भी. राजस्थानी रा एक ओर साहित्कार है जिका अपनै आप नै राजस्थानी आन्दोलन रा संस्थापक अर प्रदेशाध्यक्ष बतावै. बां रो नांव थे ही बताओ कै बे कुण है. राजस्थानी री रोटी खावै अर गुण गावै किणी ओर रा. मालचंद जी तिवाड़ी, सी पी देवल, बिज्जी जिस्या लोग आज नांव रा भूखा रैग्या है. आं लोगां चायो कै आपणों नांव टीवी, अखबार अर लोगां रै मुख ताई आवणों चाईजे पण इणी मुख सूं राजस्थानी जनमानस थानै गाळ काढै. गळती करग्या राजस्थानी लोग. राजस्थान पत्रिका जकी राजस्थान री रोटी खावै, अठै रो रिपियो लूटै अर हाजरी बजावै दूजी भाशावां री. राजस्थानी री कोई बात छापा रो केयो तो संपादक महोदय बोल्या कै "हम न तो राजस्थानी के पक्ष में छापेंगें और न ही विपक्ष में", थे लोगां पेली छाप दियो विपक्ष में अब क्यामी पक्ष में छापस्यो. भारत में जित्ता भी अंग्रेजी अखबार छपे, वा रा धणी राजस्थानी लोग है पण ऐ लोग कदी राजस्थानी खातर नीं बोलै. आं सारा लोगां नै रिपिया चाईजे, माँ नीं. आपां किण लोगां सूं राजस्थानी मानता री आस राखां. ऐ लोग सिर्फ अर सिर्फ नांव रा भूखा है. आं लोगां नै शर्म नीं आवै. ऐ राजनीति करणी जाणे. कई लोगां रा नांव इण भान्त है जिका राजस्थानी रा साहित्कार श्री ओम पुरोहित 'कागद' जी उपलब्ध कराया है. जका बतावे कै जे ऐ लोग १० दिन कारोबार बंद कर देवै तो मान्यता तैयार है. 

1 सिँघाणियां ग्रुप
2बांगड़ ग्रुप
3मोदी ग्रुप
4 बिड़ला ग्रुप
5केड़िया ग्रुप
6 बिहाणी ग्रुप
7 थिराणी ग्रुफ
8मुरारका ग्रुप
9पौद्दार ग्रुप
10डालमियां ग्रुप
11 बज़ाज ग्रुप
12 लखोटिया ग्रुप
13 सर्राफ ग्रुप
14मील ग्रुप
15बीका जी भुजिया
ऐ इत्ता इ लोग काफी है.........

तो म्हारी आपसूं अर्ज है कै इसा लोगां नै राजस्थान में रे'र राजस्थानी रो नांव ख़राब करण री जरुरत कोनी. आ लोगां नै केवो यूपी, बिहार में जाय'र रेवा लाग ज्यो.

जय राजस्थान!
जय राजस्थानी!!

बिन भासा बिन पाणी बिलखै राजस्थानी!


राजा जी, थांरै राज में बिन भासा बिन पाणी,
बिलखै राजस्थानी!
जिका सांपा नैं दूध पायौ हौ
वै आज फण उठावै है!
नित नूंवी कर कुचमाद~यां थांरी,
मायड़ भासा पर आंगळी उठावै है!
घर रा पूत तो कंवारा डोलै!
दूजां री क्यूं फुलड़ा सैज सजावौ हौ?
घर रा टाबरिया रोटी नैं तरसै,
दूजां नै मालपुवा क्यूं पुरसावौ हौ?
रोळ राज में तळै बेठगी भासा संस्कृति,
क्यांरी कुड़ी बिड़द बंचावौ हौ?
कक्कौ कोडको, मम्मा मौरी माय अै
गगा गौरी गाय अे, घाट पिलाणै जाय अे।
अेके-अेक दूवै-दो, अेके मिंडी दस,
तीये मिंडी तीस, पांचूड़ी पच्चीस।
छिनूड़ै री चौपन, बारम बार चमाळसो।
कठै गयी बा मारणी,
कठै गमग्या बै ढूंचा प्हाडा?
कठै गया बै मारजा,
कठै गई बै पोसाळांं?
इण भणाई सूं पांचवी पढयोड़ा
बडां बडां रा गोडा टिकावै है।
रोळ राज रा बीए एमए,
छोटी-छोटी गिणत्यां में अरड़ावै है।
कूड़-कपटियै इण राज में
भणाई भेळी व्हैगी।
गरूजी गरूजी नीं रैया,
नोट छापण री मसीन बणग्या।
चोटी करती चमचम
विद्या  आंवती घमघम।
विद्या री देवी रूसगी रोळ राज में,
कुण हालरिया हुलरावै?
कुण साची सीख देवै,
कुण मरण बडाई रौ पाठ पढावै?
बापड़ी बणगी रजपूती
जणौ-जणौ आंख दिखावै।
रोळ राज रा राजा बण
क्यूं इतरा फनफनावौ हौ?
राहुल-सोनिया रै दरबार में भर हाजरी।
वांरा गुण-बखाण भाटां ज्यूं
क्यूं बिड़दावौ हौ?
कठै गई थारी बै जादू री काम्ड़ियाँ {छड़ियां}
क्यूं वांरी हां में हां मिलावौ हौ?
मायड़ भासा बोलतां थारी जीभड़ली
क्यूं हिचकावै है?
ओप री भासा में भासण झाड़-झाड़
क्यूं कुड़ी मौद मनावौ हौ?
मायड़ लाजां मरै इसड़ै पूतां पर
क्यूं, लाखीणी साख गमावौ हौ?
सौ क्यूं देख रह~या निजरां सूं,
फैर, माथै में क्यूं धूड घालौ हौ?
राज-काज संभै कोनी,
जद क्यां तांणी तड़फा तोड़ौ हौ?
साचै गरू सूं लेय सीख,
भगवां क्यूं नीं धारौ?
विनोद सारस्वत,
बीकानेर

राजस्थानी रचनाकारां सारू सूचना

राजस्थानी रचनाकारां सारू सूचना

राजस्थानी जन-जन ताईं पूगै इण सारू बोधि प्रकाशन पुस्तक पर्व योजना रै तै'त 'राजस्थानी साहित्य माळा' छापण री तेवड़ी है। इण योजना में राजस्थानी रा दस रचनाकरां री एक-एक पोथी रो सैट ऐकै साथै प्रकाशित होय सी। ऐ दस पोथ्यां कहाणी, नाटक, एकांकी, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य, रेखाचित्र, निबंध, कविता, गज़ल आद विधा में होय सी। साफ है एक विधा में एक टाळवीं पोथी। कुल दस पोथी रै एक सैट री कीमत 100/- (सौ रिपिया) होय सी। इण पोथी माळा रो संयोजन राजस्थानी रा चावा साहित्यकार श्री ओम पुरोहित 'कागद' नै थरपियो है।

योजना में सामल होवण सारू 15 मई, 2010 तक इण ठिकाणै माथै रुख जोड़ो-

श्री ओम पुरोहित 'कागद'
24, दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम-335512
खूंजै रो खुणखुणियो : 9414380571

बोधि प्रकाशन
एफ-77, सेक्टर-9,
रोड नं.-11, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया,
बाईस गोदाम, जयपुर

मुख्यमंत्री जी रै नांव खुली पाती!

आदरजोग मुख्यमंत्री जी, अशोक गहलोत सा, गढ बीकाण सूं विनोद सारस्वत रा पगै लागणा मानज्यौ सा। आगे म्हनैं आप रै राज में इसी कोई खास बात निगै नीं आ रैयी है जिण सूं ओ लखाव व्है कै राजस्थान में सत्ता बदळीजी है! आप री सरकार रौ इसौ कोई काम नीं दीख रह~यौ है जिण सूं ओ लखाव व्है कै आ जनता री चुण्यौड़ी लोकतांत्रिक सरकार है। आप री टी वी अर अखबारां में घणी ही धन धन व्है रैयी है पण साची बात तो आ है कै इण सूं जनता री गाढी कमाई लाली लेखे लागण रै टाळ कीं नीं व्है रह~यौ है। टी वी अर अखबारां में लूंठा-लूठा विज्ञापन छपवाय नैं आप मन में मोटा भलांई व्हो पण इण सूं गरीब रै पेट री दाझ नीं बूझै। मतलब हांती थोड़ी अर हुल हुल घणी।
वसुंधरा राज भी आप री तर~यां ही चाल रह~यौ हो पण उण सरकार रा विकास रा काम लोगां नैं सांमी दीखै। हां आ बात साची है कै इण कामां में जम’र जीमण-चाटण व्हिया, जिणां रौ भोग तद रा राजनेतावां अर अधिकारियां कर~यौ। पण आप रै राज में तो इसौ कीं नीं दीठै, फैर भी आप री धन धन व्है रैयी है। आप रै राज में नरेगा योजना में भी इणी भांत रा जीमण-चाटण व्है रह~या है-आप घणी ही लूंठी लूंठी योजनावां रा बखाण करौ पण साची बात तो आ है कै आम आदमी री माळी हालत में कोई सुधार नीं व्हियौ।
आप री सरकार री सगळी योजनावां ही फगत रीत रौ रायतौ बणती सी लागै। हुकुम, भुखो तो धायां ही पतीजै। आप री अे योजनावां उण री भूख मेटण में पूरी तर~यां विरथा रैयी है। कवि मोहम्मद सदीक साहब री कविता मुजब ‘‘थै मजा करो महाराज आज थांरी पांचू घी में है, म्है पुरस्यो सगळौ देस और थांरै कांई जी में है। गळी, गळगळी होय गांव री बिलखै साख भरै अरे, लूचा लूंटै माल मसखरा मीठो नास करै।’’ आ कविता सदीक साहब तीसेक साल पैली लिखी ही अर आज भी हालत वा ही है इण में कोई फरक नीं आयौ।
म्हनैं साफ लागै कै लोकतंत्र अठै आय नैं हारग्यौ। राजसाही नैं लोग पाछी चेते करण लागग्या। राजसाही री वगत जिका पक्का काम व्हिया वै आज भी इण लोकतंत्र नैं चिड़ावै अर लोगां रै माथै चढ नैं बोले कै ओ राज ठीक है या बो राज ठीक हो। आ तो आप नैं भी मानणी पड़सी कै आज भी आप रै शाषण में खास थंब है वो राजसाही रो ईज है। लोकसाही मे बणयौड़ी ऊंची-ऊंची आभै नैं नावड़ण री आफळ करती अटटालिकावां कदै भी धुड़ सकै अर धुड़ रैयी है पण राजसाही रै वगत रा बण्यौड़ा जूना ढूंढा हाल तकात बजर बंट बैठा इण लोकसाही पर आंगळी उठांवता निगै आवै। लोकसाही में घणकरा सरकारी दफ्तर आज भी राजसाही रा वा ढूंढा में ईज चालै। उण वगत री राजसाही भी काळ-कसूंबै लोगां नैं रोजगार देवण रा जतन करती पण इण रै हैठळ वै पक्का काम करांवता। पण आज अकाळ राहत रा कामां में सड़कां पर सूं धूड़ौ हटावण रै टाळ कोई दूजो काम नीं व्है रह~यौ अर ओ ईज हाल नरेगा रौ है।
राजसाही रा लोग भी मानता कै भींतड़ा {गढ-कोट} ढह जासी पण गीतड़ा रह जासी। पण वांरा तो हाल भींतड़ा भी कोनी ढह~या अर गीतड़ा तो गाईजता ईज रैसी। सो हुकुम इण लोकसाही में तो म्हनैं इण दोवूं बातां में ही गोळ लागै। क्यूंकै इण लोकसाही अठै री भासा, साहित्य अर संस्कृति नैं तळै बैठावण में कोई कमी नीं राखी। अठै राजपुताना में हिन्दी थरप’र इण क्षेत्र नैं अेक चरणोई रौ रूप दे दीनौ है, जठै हरैक प्रांत रा गोधा चर रैया है अर इण गोधां नैं जै गोधा केवौ तो अै सींग औरूं मारै। अठै रा जाया जलम्या छोरा इण गोधां रै आगे मेरिट री कुश्ती में नीं टिकै अर सरकारी नौकर~यां पर प्रांतियां रै हाथां में आ ज्यावै। राज में ऊंची-ऊंची नोकर~यां में पूग’र अठै रा लोगां नैं देस भगती अर कानून रा इसा पाठ पढावै कै अठै रा राजनेता वांरै आगे पागड़ी तो पागड़ी तागड़ी खोलावण नैं भी त्यार व्है जावै।
इसौ कुजोग भोगणौ पड़ रह~यौ है अठै रा राजनेतावां नै। म्हारी बातां खारी व्है सकै, पण खरी है। आप खुद नैंम धरम नैं सैमूंडै राख’र इण साठ बरसी लोकसाही परख राजसाही सूं करोला तो आप नैं भी ठा पड़ ज्यासी। पण म्हनै लागै कै आप इण नैं भी आ कैय नैं टाळण री चेस्टा करोला कै अे सैंग सुणण में आछा लागै पण बरताव में अैड़ौ नीं व्है सकै। सौ कीं व्है सकै पण इण सारू साची ऊरमा अर हियै में अेक हूंस व्हैणी जोईजै। आगे म्हैं म्हारी सीधी बात पर आऊँ जिण सारू म्हारै हियै में अेक पीड़ है अर आ इत्ती बडी भूमिका पोळाई है। म्हैं बात करूं आपां री, थांरी-म्हारी अर इण समूचै राजपूतानै री मायड़ भासा राजस्थानी री। आज इण भासा री कांई गत व्है रैयी है आ बात आप सू भी छांनी कोनी। आप किण मजबूरी रै पांण 2003 में राजस्थान विधान सभा सूं सरब सम्मति सूं प्रस्ताव पास करवाय नैं भारत री सरकार नैं भेजायौ हो? म्हनै इण बात रौ ज्ञान कोनी। पण कित्तै दुरभाग री बात है कै राजस्थानी भासा नैं संविधान री आठवीं अनुसूचित मे भेळण में भारत री सरकार ओसका ताक रैयी है। अठिनैं आप रै राज में राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी अेकदम बापड़ी बणगी है, अठै नीं तो अध्यक्ष, सचिव है अर नीं ही कार्य समिति अर सामान्य सभा। अकादमी री मुख पत्रिका ‘‘जागती जोत’’ डेढ बरस सूं छप नीं रैयी है। कांई आ ईज है इण लोकराज री भासा संस्कृति नीति? म्हनैं ठा नीं आप इत्ता परबस क्यूं हो?
आज बारला मुटठी भर लोग आपां री भासा पर सवाल खड़ा कर रैया है। आप रा शिक्षा मंत्री अठै री मायड़ भासा हिन्दी बता रैया है। राजस्थान रा कवि, लेखक, हेताळू आद सगळा बोक बोक नैं आ बता रैया है कै म्हारी मायड़ भासा राजस्थानी है। इत्तौ की हुय रह~यौ है पण आप मौनी बाबा री तर~यां मून क्यूं धार राखी है? आप कोई पडूतर क्यूं नीं दे रह~या हौं? आप नैं किण बात रौ संको नैं डर है? आप छाती चवड़ी करनैं क्यूं नीं बोलो? कै म्हारी मायड़ भासा राजस्थानी है. आप हिन्दी रा इत्ता लटटु कींकर व्हैग्या? आप इण लीक नैं क्यूं नीं तोड़ौ? क्यूं नीं आप, आप रै हरैक भासण में राजस्थानी ईज बोलण रौ संकल्प लेवौ? देखां आप नैं कुण रोकै? आप माथै राजस्थान री जनता जनार्दन रौ आसीरवाद है। आस राखूं कै आप पर म्हारी इण बातां रौ असर व्हैला? अर आप हाथूंहाथ राजस्थानी भासा रौ माण बधावण रौ काम कर नैं जस रा गीतड़ा लिखावौला। नींतर म्हैं आ ईज समझूंला कै हिन्दी राजस्थान पर थरप्योड़ै अेक नूंवै उपनिवेसवाद री भासा है अर राजस्थान भारत रौ उपनिवेस है। जदि आप नैं म्हारी बातां खरी लागै तो कोई इसौ पग उठावौ कै सगळां री बोलती बन्द व्है जावै। इणी आस रै सागै। जय राजस्थान, जय राजस्थानी।

विनोद सारस्वत

मायड़ भाषा पेटै ओम पुरोहित 'कागद' री दोय पंचलड़ी

मायड़ भाषा पेटै ओम पुरोहित 'कागद' री दोय पंचलड़ी-

१. आ मन री बात बता दादी


आ मन री बात बता दादी।
कुण करग्यो घात बता दादी।।

भाषा थारी लेग्या लूंठा।
कुण देग्या मात बता दादी।।

दिन तो काट लियो अणबोल्यां।
कद कटसी रात बता दादी।।

मामा है जद कंस समूळा।
कुण भरसी भात बता दादी।।

भींतां जब दुड़गी सगळी।
कठै टिकै छात बता दादी।।

२. पूछो ना म्हे कितरा सोरा हां दादा

पूछो ना म्हे कितरा सोरा हां दादा।
निज भाषा बिना भोत दोरा हां दादा।।

कमावणो आप रो बतावणो दूजां रो।
परबस होयोड़ा ढिंढोरा हां दादा।।

अंतस में अळकत, है मोकळी बातां।
मनड़ै री मन में ई मोरां हां दादा।।

राज री भाषा अचपळी कूकर बोलां।
जूण अबोली सारी टोरां हां दादा।।

न्याव आडी भाषा ऊभी कूकर मांगां।
अन्याव आगै कद सैंजोरा हां दादा।।

हाड हरामियां सूं क्यांरी आस?

भाई ओम जी पुरोहित ’’कागद’’ अेक दम साची बात लिखी  है अे वै लोग है जिका राजस्थानी रा लूंठा माण-सम्मान, पुरस्कार पायौड़ा नैं राज री गिदी माथै बिराजणिया अर वै उधोगपति है जिणां री पिछाण ही इण भासा सूं जुड़यौड़ी है। अे सगळा आमरण अनसन पर बैठ जावै तो फौड़ा ही कांई चीज रा? पण म्हैं समझूं कै इण लोगां नैं अबै इण री कोई जरूत कोनी। इण सगळां लोगां इण भासा रै पाण आप री वैतरणी पार करली। इणा भासा री राजनीति कर ली सगळा माण-सम्मान आप रै गोझै में घाल लिया। चोखलै में आप री धन धन करवाय ली।
सैसूं पैली हिन्दी रै आगे टंटाटैर हुवणिया भी अे ईज लोग है। ‘‘गरज मिटी नैं गूजरी नटी’’। सो भाई ओम जी, इण लोगां री गरज पूरी होयगी अबै इणा नैं इण भासा संस्कृति सूं कीं लेणौ-देणौ कोनी। अे वै चिकणा घड़ा है, चिकणै घड़ै पर जदि छांट रौ असर व्है तो इण लोगां पर भी व्है। राजस्थानी रा अे मोटा माण-सम्मान पावणिया लोगां रै बारै में म्हैं 1996 में ‘मायड़ रो हेलो’ में अेक संपादकीय लिख्यौ हौ-’’नीं धो सकोलो, हाड-हराम रौ काळास’’।
जिका उधोगपतियां नै गढपतियां रौ आप नांव लिख्यौ है तो सुणौ सैसूं पैली रोळ-राज रै आगे अे लोग ही टंटाटैर व्हिया हा, आजादी रा बीन अे ईज बण्या हा अर भासा री मोत रै परवांणै पर इण लोगां ही आप री छाप लगाई ही अर हिन्दी रा अखबार निकाळ नैं इण लोगां ही भारत री सरकार साथै सीर री दुकान सजाई ही। सो इण लोगां सूं आ आस करणी विरथा है, अबै तो दूंवौ जोस, नूंवी आजादी रा सपना देखणिया लोग ही कीं कर सकै नीं तो राम ही रूखाळौ है।

विनोद सारस्वत,
बीकानेर

ऐ लोग आमरण धरनै माथै बैठो अर फेर देखो राज रा लटका-घरां देय'र जावै मानता

मायड़ भाषा री राज मानता पेटै अकरा बौल सुण काळजै ठंड बापरगी।आ बळत जे सगळां रै काळजै हुवै तो मज़ा ई आ जावै अर बात ई बण जावै।पण जका लोग कन्वीनर ,अकादमी अध्यक्ष,अकादमी सदस्य ,ज्यूरी मैम्बर, ऐडवाइजरी मेम्बर बणन,का सरकारी ओ'दां माथै बैठण री जुगत मेँ रै'वै,बां नै मायड़ भाषा री मानता नीँ मानता कद संतावै?
जे बिजी सा आमरण धरनै माथै बैठै तो राज रा चूळिया हाल जावै। म्हैँ ऐड़ै धरनै मेँ सारां सूं आगै बैठूं।बिजी सा नै अब कांई चाइजै? आखो साहित्य जगत अर राजस्थानी समाज बां नै सिरआंख्यां माथै राखै। भाषा हेत उण रो बलिदान उण री कीरत नै सवाई अनै और ऊजळी कर सी।
बिजी ई क्यूं ऐ लोग आमरण धरनै माथै बैठो अर फेर देखो राज रा लटका-घरां देय'र जावै मानता :-
1 विजयदान देथा
2 राणी लक्षमी जी
3 गज सिँह जी
4 भैँरोसिँह जी शैखावत
5अशोक जी गहलोत
6महाराणा मेवाड़
7महाराणी जयपुर
8श्रीलाल नथमल जोशी
9 दीनदयाल औझा
10कल्याण सिँह जी
11 भंवर सिँह सामौर
12देव कोठारी
13 सोनाराम बिश्नोई
14ज्योतिपुंज
15घनश्याम तिवाड़ी
16 मोहन आलोक
17शांतिभारद्वाज
18वेद व्यास
19रत्नशाह
20 नंद भारद्वाज
21श्याम महर्षि
22अन्नाराम सुदामा
23 गजानन वर्मा
24 नागराज शर्मा
25 नीलू हिरोइन

अर ऐक ऐक मैम्बर आं घराणां सूं-

1 सिँघाणियां ग्रुप
2बांगड़ ग्रुप
3मोदी ग्रुप
4 बिड़ला ग्रुप
5केड़िया ग्रुप
6 बिहाणी ग्रुप
7 थिराणी ग्रुफ
8मुरारका ग्रुप
9पौद्दार ग्रुप
10डालमियां ग्रुप
11 बज़ाज ग्रुप
12 लखोटिया ग्रुप
13 सर्राफ ग्रुप
14मील ग्रुप
15बीका जी भुजिया
बस ऐ 40 आदमी आमरण अनशन माथै बैठ जावै तो मानता आथणगै ई त्यार है।

भासा बिना आदमी अडोळो

विनोद जी सारस्वत री नुवी कहाणी "हरखियो चमगुंगो व्हेग्यो" पर टिप्पणी

विनोद जी सारस्वत री नुवी कहाणी "हरखियो चमगुंगो व्हेग्यो" पर टिप्पणी

राम-राम हरखू जी,

काम तो घणो आछो करण लाग रिया हो आप. लखदाद है आपनै. आप किसै प्रान्त में रेवो. ठा है कई आपनै. ओ राजस्थान है. अठै राजस्थानी पढाई जासी टाबरां नै. आप बड़ा लोग हो. आप आपरा पोती-पोत्याँ नै घणे ऊँचा स्कूलां में पढ़ा सको हो. पण गरीब किसै स्कुल में पढासी. शर्म आवणी चायजै आपनै जके राज्य में जाम्या, रेवां लाग रिया हो, बठै रो नमक खाओ. जठै आपरी माँ आपनै लोरियां गा'र थानै सुनावै. उण राज्य में आप राजस्थानी नीं पढ़न देवो. देखन आप कित्ता लोगां नै रोकोला. अजे तो थे राजस्थानी लोगां रो प्यार देख्यो है. रोष नीं देख्यो. जे राजस्थान में राजस्थानी नीं पढाई जासी तो कीं न कीं तो खावण रा लखण तो आप करो इ हो. 
आपरी इण करतूत सूं सगळा लोग आप सूं खार खायोड़ा है. आप जीकी करतूत करी आप रा ठोड ठोड जीवता रा पुतला बाळण लाग रिया हाँ. लोग बांगा दे रिया है. सो आप सुधर जावो तो ठीक नीं तो वगत आपनै जरूर देखेला. राजस्थानी लोगां सूं भेदभाव करयो. इतिहास थानै कदी माफ़ नीं करेला. आप नै भगवान् कुम्भीपाक नरक सूं भी बड़ो नरक देवे. इस्सी आस राखां.

साथै-साथै आप आ कविता भी बांच लेवो कठै इ सदबुधि मिलै तो.
हिन्दी री हैवाई छोडो

हिन्दी री हैवाई छोडो, भासा मायड़ बोलो रै।
परभासा रै भूतां नै दूधै रौ तेज दिखाद्यो रै।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

छाछ लेवण नैं आई आ तो घर री धिराणी बणगी रै।
रोटी-रूजगार खोस्या इण तो दफ्तर्यां में छागी रै।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

साठ बरसां सूं छाती पर मूंग दळ रैयी
संस्क्रति रौ करियो कबाड़ो रै।
इण रौ बाळण बाळौ रै, इण रै लांपौ लगाद्यो रै।
भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

पांच परदेसां रै पांण आ तो रास्ट्रभासा बणगी रै।
जबरी पोल मचाई इण तो समझ नाथी रौ बाड़ो रै।
फरजी डिगर्यां ले-ले आया धाड़वीं, नौकर्यां कब्जाई रै।
इण रौ नखरो भांगौ रै, राजस्थानी बोलो रै, भासा मायड़ बोलो रै।

जद बाईस भासावां संविधान सीकारी, रास्ट्रभासा कुणसी रै ?
राजस्थानी री बळी लेय'र आ तो हुयगी राती-माती रै।
इण नैं थोड़ी छांगो रै, इण री कड़तू तोड़ो रै, राजस्थानी बोलो रै।

जागो ! छात्र-छत्रपती, खोल उणींदी आंखड़ल्यां।
देद्यो नाहर सी दकाळ रै, धरती धूतै,
आभौ गरजै, धूजै भारत री सरकार रै।
छांटा-छिड़कां सूं नीं बूझैला आ मान्यता री आग रै।
छात्र-छत्रपती जागो रै, भासा मायड़ बोलो रै।

छात्र-छत़्रपती जागो रै ! ओ लूंठा सेठां जागो रै !
ओ बीकां, जोधां, मेड़तियां, सेखावतियां, सिसोदियां, सिहागां जागो रै।
थै क्यूं लारे रेवौ ? गोदारां मीणा भील-पड़िहारां रै ।
जात-पांत रै टंटै नैं छोडो एकमेक सुर सूं भरो राजस्थानी हुंकारौ रै।
भासा मायड़ बोलो रै।

साठ बरसां सूं उडीक रैया कै भारत रा भाग्यविधाता टूठैला,
पण घोर खेंच सूती सरकार सत लेवण नैं अड़गी रै।
इण री घोर खोलण सारू बजावो राजस्थानी धूंसौ रै।
राजस्थानी बोलो रै, भासा मायड़ बोलो रै।
हिन्दी री हैवाई छोडो, भासा मायड़ बोलो रै। 

आपरा राजस्थानी बेली

दिल्ली रै कुड़कै मांय फस्यौडा राजस्थान रा मिजळा नेता!

आज म्हनैं इण बात रौ पक्को पतियारौ व्हैग्यौ कै राजस्थानी भासा नैं रिगदोळणिया फगत इण प्रदेस रा ही वै मिजळा राजनेता है जिका वोटां री फसल तो इण भासा में काटै, पण विधायक अर मंत्री बणतां ही आप री औकात भूल जावै। कुल मिलाय नैं भारत रा नेतां राजस्थान रै नेतावां नैं जिण कुड़कै में फसा’र छोडग्या आज तकात वै उण कुड़कै सूं बारै निकळ नीं सक्या है। हिन्दी रा गंंुण गावणिया इण नेतावां रा पौत नैं इणा नैं कितोक ज्ञान है आज सगळौ चवड़ै आयग्यौ। आज रै भास्कर में छप्यै अेक समाचार मुजब राजस्थान रौ जूनौ ’िाक्षा मंत्री काळी चरण सर्राफ आ कैवै कै हिन्दी रास्ट्रभासा है! अबार रौ ’िाक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल आ कैवै कै हिन्दी राजस्थान री मातृ भासा है।
दूजै कांनी राजस्व मंत्री हेमाराम आप री न्यारी पूंपाड़ी बजावंता आ कैवै कै राजस्थानी भासा हरैक ठौड़ न्यारी-न्यारी बोली जावै। अबै इण कुमाणसा नैं आ कुण समझावै कै प्रकृति रौ नैम है कै 12 कोस पछै बोली बदळ जावै अर ओ नैम संसार री हरैक भासा पर लागू व्है। इण लोगां नैं ओ भी ज्ञान कोनी कै भासा अर बोली में कांई फरक व्है। भासा अर बोली मे फरक नी कर सकै वै गैलां में कांई घटै। जिण भांत अेक-अेक मिणियो जोड़ण सूं माळा बणै, उणी भांत कैई बोलियां रै पांण भासा बणै अर जद इण में साहित्य रौ सिरजण व्है वा भासा बण जावै। हिन्दी भासा में बोलचाल रा 97 पंजीकृत सरूप काम में लेईजै अर राजस्थानी में 73 सरूप काम मे लेईजै इणी भांत असमिया में 2, बंगला में 15, गुजराती में 27, कन्नड़ में 32, कोंकणी में 16, मलयालम में 14, मराठी में 65, तमिल में 22, तेलुगु में 36, उर्दू में 9 क’मीरी में में 5 नेपाळी में 4, संथाळी में 11, पंजाबी में 29, सिंधी में 8, बिहारी में 34, अे सगळा वां बोलियां रा न्यारा-न्यारा सरूप है अर इण बोलियां सूं अे भासावां बणीजी है। इण लोगां नैं राजस्थानी रै लूंठै साहित्य रौ अंगाई ज्ञान कोनी। आखी जगत बिरादरी इण भासा री धाक मानै। राजस्थान री यूनिवर्सिटिया में तो इण रौ साहित्य पढाईजै ई है इण रै सागै ही अमरीका री सिकागो यूनिवर्सिटी में भी पढाईजै। अमरीका री ओबामा सरकार भी आप रै अठै इण भासा नैं मानता दे राखी है। आ तो वा भासा है जिण में मीरां मेड़तणी गिरधर गोपाळ नैं रिझायौ है, इणी भासा में भगवान करमा रौ खीचड़ौ खायौ है। इण भासा रौ बखाण कठै तांई करां इण रौ कोई पार कोनी। पण इण सूं ओ साफ लखाव व्है कै लारलै साठ बरसां सूं जिण हिन्दी माध्यम सूं अे नेता भण्या-गुण्या है वांरौ डोळ नै वारौ ज्ञान चवडै+ आयग्यौ है। इण प्रदेस रा नेतावां रौ ही ज्ञान जद इत्तौ ओछो नैं कंवळौ है तद सोचो कै इण प्रदेस में इण अधकिचरी भणाई में भण्या आम लोगां रौ ज्ञान कित्तौक बध्यौ हुसी। अे मिजळा नेता नीं चावै कै प्रदेस रा टाबर आप री उण वीर भासा में भणै, जिण रै रसपाण सू खागां खड़क उठै अर लोग बळती लाय में कूद पड़ै। जदि ओ हुंवतो तो आज आ विगत नीं होवंती, इण रोळ राज रा टप्पू कदै चकीज जांवता अर मायड़ भासा रौ अपमान भी नीं होंवतो अर लोग इण अन्याव नैं मून धार नैं नीं सैंवता। वै खागां लेय’र इण रोळ राज रै सांमी आ भिड़ता। मतलब भारत रा राजनेतावां नूंवै उपनिवेसवाद री अेक भासा ’’हिन्दी’’ माडाणी अठै रा लोगां पर थरपदी। किणी भी संस्कृति नैं खतम करणी है तो अेक सीधो सो हथियार है कै उण री भासा नैं खतम कर दो, संस्कृति रा भट~टा मतोमत ही तळै बैठ जासी। राजस्थान रा राजनेता आप री चाल में कामयाब व्हैग्या। इण नेतावां री लूण हरामी रौ अेक नमूनौ निजर है- कै किण भांत इण लोगां हिन्दी रा पांवडा इण प्रदेस में पधरावण रा जतन करण सारू राजस्थान री जन गणना रा आंकड़ा में हिन्दी नैं पटराणी बणावण रा सगळा ं पड़पंच रच लिया। 1951 री जनगणना मुजब राजस्थानी भासा बोलणियां री संख्या 1,34,01,630 ही अर 1961 में राजस्थान री आबादी में 26 प्रति’ात रौ बधापौ व्हियौ पण राजस्थानी बोलणियां री संख्या में फगत 11 प्रति’ात रौ ही बधापौ दीखै। 1961 री जन गणना में राजस्थानी बोलणियां री संख्या 1,49,33,016 दिखाईजी है। इणी भांत आवण वाळी हरैक जन गणना मे राजस्थानी बोलणिया री संख्या नैंं अे बटटै खाते में नाखता थकां इण नैं हिन्दी रै खाते में खतावंता-खतावंता दिल्ली री इण आस नैं पूरी कर दी कै राजस्थान हिन्दी भासी प्रदे’ा है। मतलब राजस्थान नैं दिल्ली रौ उप निवे’ा बणावण री सगळी जरूरतां पूरी करली जद ही तो राजस्थान रौ ’िाक्षा मंत्री कैवै कै राजस्थान री मातृ भासा हिन्दी है। इण भांत राजस्थान नैं अेक चरणोई बणा’र समूचै भारत रा गोघां नैं अठै चरण री खूली छूट मिलगी। राजस्थानी भासा नैं आठवीं अनुसूचि में भेळण री मांग बरसां सूं चालती रैयी है, अर राजस्थान री विधान सभा 2003 में अेक प्रस्ताव सरब सम्मति सूं पारित कर नैं भेज चुकी है ओ प्रस्ताव भी सरकार किण मजबूरी रै पांण पारित करवायौ आ बात जगचावी व्है चुकी है। राजस्थानी भासा आठवीं अनुसूचि में जद कदै भी भिळै, पण राजस्थान सरकार खुद कनैं इण भांत रा अधिकार है कै वा अेक रात में प्राथमिक ’िाक्षा रौ माध्यम राजस्थानी नैं बणा सकै। पण सरकार ओला रैयी है अर कोई नैं कोई नूंवौ विवाद खड़ो कर नैं इण मामला नैं Åंडै कुअै में न्हाखण सारू ताफड़ा तोड़ रैयी है। राजस्थान रा राजनेता आम जन री नीं सुण नैं वां अधिकारियां री सला पर काम कर रैया है जिका नीं चावै कै राजस्थानी अठै रै राजकाज अर ’िाक्षा री भासा बणै। नेतावां खनै आप री सोचण-समझण री सगळी Åरमा खतम व्हैगी। वै तो उणी मारग पर चालै जिका वांरा पीअे अर सेकzेटरी बतावै। जिका सगळा लोग बारै रा है, कैई अेक राजस्थानी मूळ रा है भी तो वांरी कठैई चलै कोनी। अे नेता इण अधिकारियां रै हाथं री कठपुतलियां है, अे जिंया नचावै अै बिंया ई इज नाचै। फैर तो अठै रौ राम ही रूखाळौ है अर इण भासा में कीं तो इसौ है नैं आप री वा लूंठाई है कै अे मिजळा नेता अर वै बारला अधिकारी लाख फिटापणौ करलौ इण भासा री लूंठाई अर अमरता नैं कम नीं कर सकै।
विनोद सारस्वत, बीकानेर

राज री मानता री बाट जोंवती राजस्थानी भासा!

भारतीय संसंद में 1963 अर 1967 में करीज्यै फोरबदळ मुजब भारत रौ संविधान देस री राज भासावां अर राज्य री राज भासावां नैं रास्ट्रभासावां सीकार करण रो फेसलो लेवे अर उण में किणी राज्य री आबादी रै कीं भाग में बोलीजण वाळी भासा रै वास्तै खास बंदोबस्त करै इण रै सागै ही भांत-भांत री अदालतां रै काम में बरतीजण वाळी भासावां रै बधापै रौ बन्दोबस्त भी करै। संविधान री आठवीं अनुसूचि में भिळयौड़ी भासावां है जिणा नैं ‘‘भारत री भासावां’’ कैर्इ्रजै। इणा में घणकरी भारत री बडी अर सैसूं लूठी जातियां री भासावां है, वांनै पैली ठौड़ दिरीजी है।
संसद में अंग्रेजी नैं आठवीं अनुसूचि में भेळण रै प्रस्ताव पर बोलतां तद रा भारत रा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कैयो कै आपां रा संविधान लिखणियां ओ तै करतां घणी सूझ री ओळख कराई कै आठवी अनुसूचि में भिळयौड़ी सगळी भासावां नैं रास्ट्रभासावां मानणी चाईजै। (जवाहर लाल नेहरू रौ भासण, 1957-1963 (अंग्रेजी में), भाग-4 पांनावळी-53, 65)
रास्ट्रभासावां री आ परिभासा नीं तो राजनीतिक क्षेत्र अर नीं ही आम जन में घण चावी है। उतरादै भारत खासकर (राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेस, मघ्य प्रदेस अर बिहार) रा लोग हिन्दी नैं रास्ट्रभासा मानै, जदकै हिन्दी नैं हाल राज भासा रौ दरजौ मिल्योड़ौ है, रास्ट्रभासा रो नीं। घणकरा नेतावां अर भण्या-गुण्या लोगां नैं भी हाल आ निगै कोनी कै हिन्दी रौ संविधान मांय कांई दरजौ है? गैर हिन्दी राज्यावां वाळा हिन्दी नैं तो मानै इज कोनी क्यूंकै वांरै प्रदेसां में सगळो काम-काज वांरी भासावां में व्है अर अंग्रेजी रौ बरताव मोकळायत में करै। वां लोगां में आपू आप री मायड़ भासा रै प्रति घणौ हेत नैं चाव है।
आठवीं अनुसूचित में सामल भासावां नैं प्रादेषिक भासावां भी कैईजै क्यूंकै इणा मांय सूं घणकरी भासावां कैई राज्यावां री भासावां पण है। पण इण आठवीं अनुसूचि में संस्कृत भी भैळी है, जिण नैं भारत में साहित्यिक, सांस्कृतिक अर घार्मिक रीत-रिवाजां रौ खजानौ अर कैई भारतीय भासावां रै सारू सबदां रौ खजानौ भी मानीजै।
आठवीं अनुसूचि में सिंधी, कष्मीरी अर नेपाळी भी मिळयौड़ी है, जिणा में कष्मीरी री हालत घणी माड़ी है।
भारत रै संविधान में कष्मीरी भी भारत री एक रास्ट्रभासा है। पण इण रो दुरभाग देखो कै कष्मीर रै संविधान में उण नैं राज्य री राजभासा नीं मानीजी है। ध्यानजोग है कै भारत रा दूजा राज्यावां में कष्मीर री तरयां आप रो न्यारौ संविधान नीं है। कष्मीर री राजभासा उर्दु है, कष्मीरी नैं दूजी डोगरी, बल्ती, दरद, पहाड़ी, पंजाबी, लददाखी रै जोड़ अेक प्रादेषिक भासा रो दरजो मिल्यौड़ो है। (संदर्भ-कष्मीर रो संविधान, (अंग्रेजी में) पांनावळी-112) कैई लिखारां कष्मीरी नैं राजभासा रै रूप में मानता देवण री मांग करी ही पण कष्मीरी री हालत में कोई सुधार नीं आयो। आप रै घर में ही बापड़ी बणगी-कष्मीरी।
किणी भासा नैं संविधान री आठवीं अनुसूचि में भैळणौ फगत माण री बात कोनी। इण सूं विकास री नूंवी दीठ रा मारग खुलै अर उण रै काम-काज रौ बिगसाव चौगणौ व्है जावै। संघ सेवावां री परीक्षावां में फगत आठवीं अनुसूचि में भिळयौड़ी भासावां रो ई वपराव करयो जा सकै। इण भासा नैं बोलण वाळा नैं आछी तिणखा वाळी चाकर्यां मिलण में सबीस्तौ रेवै। भारत सरकार आठवीं अनुसूचि में भिळयौड़ी भासावां रै सैंजोड़ विकास सारू अेक खास समिति री थरपना कर राखी है। (हिन्दी अर संस्कृत नैं टाळ’र जिकी खास परिसदां रै हैठळ आवै)
बरसाऊ बजटां अर पांच बरसी योजनावां में इण भासावां रै बिगसाव सारू घणी लूंठी रकम खरच करीजै। छापाखाणा, सिनीमा उधोग अर रेडियो प्रसारण री अबखायां पर विचार करती वगत सैसूं जादा ध्यान इणी भासावां रै प्रकासणां, सिनिमा अर रेडियो प्रसारण कांनी दियौ जावै। आठवीं अनुसूचि में भिळयौड़ी भासावां में टाबरां सारू सांवठी पोथियां, साक्षरता अभियान सारू भणाई रा साधनां अर पढण वाळी पोथ्यां अर साहित्यिक कृतियां पर नैमसर पुरस्कार भी दिरीजै।

भासावां री इण सूचि रौ राजनीतिक फायदौ भी है। भारत रै संविधान रै अनुच्छेद 344 मुजब रास्ट्रपति कानीं सूं आठवीं अनुसूचि में भिळयौड़ी भासावां री अबखायां पर विचार करण सारू खास आयोग री नियुक्ति करीजै। दूजै सबदां में इण भासावां नैं दूजी भासावां री कूंत में खास अधिकार मिल्यौड़ा है। ठीक उणी भांत जिण भांत किणी राज्य री राज भासा री विधिक थापना रौ मतलब प्रषासनिक, विŸाीय अर बीजा अधिकार मिल्यौड़ा व्है।
तथाकथित आदिवासी भासावां अेक न्यारै ही कङूम्बै रौ निर्माण करै। रास्ट्रपति रै अध्यादेष सूं जन जातियां री सूचि में भेळीजण वाळी कैई जातियां रै अेक कङूम्बै रै प्रतिनिधियां नैं राज री चाकरी अर ऊंची पोसाळां में भरती व्हैण अर संसद-विधान मंडला अर दूजी थरप्यौड़ी संस्थावां रै चुणाव में खास सुविधावां मिळै, जिकी संविधान में मंडयौड़ी है। पण इण सारू इण भासावां नैं प्रदेस सरकारां री मानता होवणी जरूरी है जिण सूं सरकारी अभिकरण इण भासावां में पोथ्यां छाप नैं वांनै प्राथमिक षिक्षा व्यवस्था में अर खास क्षेत्रा रै सरकारी काम काज में वपराव कर सकै।
उदाहरण सारू आसाम री जन जातीय भासावां री सूचि में 35 भासावां है पण राज्य सरकार ’’सरकारी पत्र-व्यवहार सारू फगत च्यार भासावां खासी, गारो, मीजो, अर मिकिर नैं ही मानता दे राखी है। उड़ीसा में 62 जन जातियां अर 25 आदिवासी भासावां है जिण में 12 भासावां नैं उण परीक्षावां री भासा सरूप मानता दे राखी है।
इण परीक्षावां में पास व्हैण वाळा राज रा चाकरां नैं पुरस्कार औरूं देवै। (संदर्भ- टाईम्स ऑफ इण्डिया, 27 जून, 1966) केन्द्र सरकार रा अभिकरण भी इणी मतै काम करै। 1966 में आधुनिक भारतीय भासावां रै बिगसाव नैं सैंजोड़ करण वाळा सार्वजनिक संगठणा नैं आर्थिक सायता देवण सारू अेक निरणै लिरीज्यौ हौ। ‘‘आधुनिक भारतीय भासावां ’’ में हिन्दी अर संस्कृत नैं टाळ आठवीं अनुसूचि में भिळयौड़ी सगळी भासावां अर ‘‘आदिवासी भासावां’’ रै सागै ‘‘मानता मिल्यौड़ी’’ दूजी भासावां आवै। सो किणी भासा नैं ‘‘मानता नीं देवण’’ रौ अरथ उण नैं सरकार रौ समर्थन कोनी। इण भांत री भासावां रै बिगसाव अर पांवडा पसारण री सगळी जम्मेवारी इण रै बोलणियां अर हेताळूवां रै कांधै पर ही आवै, जिका आप रै बूकियां रै पाण इण रौ जुगाड़ करै।
आ सागी गत ‘‘राजस्थानी भासा’’ री है, दूजै अरथ में इण लोकतंत्र में आ दादागिरी नैं लूंट है अर करोड़ू राजस्थानियां री भावनां रौ अपमान है। क्यूंकै देस रै हर भांत रै बिगसाव में राजस्थानी लोग आगे रैया है देस री समूची अर्थ व्यवस्था रौ घणकरौ भार राजस्थानी लोगां रै खांदै पर है। तद आ बात किŸाी जचती है? कै राजस्थानी लोगां री कमाई रौ हिस्सौ भारत रा दूजा प्रदेसां में कानून री आड में किण भांत लुंटाईज रैयौ है अर अठीनैं उणा रै खुद रै प्रदेस में वांरी मायड़ भासा राजस्थानी लारलै 63 बरसां सूं इण री बाट जो रैयी है। आखर सरकार कद सुणैली राजस्थानियां री आ दाद पुकार?
भारत में भासाई अबखायां रौ न्यावजोग नैम किणी हद तांई घणौ विरोधात्मक है। अेक कांनी भासाई विधि निर्माण रौ थंब जनतांत्रिक अर समानता रै अधिकार पर जोर देवै, तो दूजी कांनी राजस्थानी जिसी भासावां रै साथै इत्तौ अन्याव! राजस्थानी में अेक कैबत रै मुजब ठावा -ठावा नैं टोपियां अर बाकी रा नैं लंगोट! कठै है राजस्थानियां नैं समानता रौ अधिकार? भारतीय संविधान रै अनुच्छेद 29 में ओ प्रावधान है कै नागरिकां रै किणी घटक नैं जिण री आप री खास भासा, लिपि अर संस्कृति है उण री रिछपाळ रौ अधिकार व्हैसी। अनुच्छेद 29 रै खंड 2 अर अनुच्छेद 30 मांय पोसाळा में भासा रै आधार पर भेद नैं नाकस कर्यौ है। अनुच्छेद 35 में साफ कैईज्यौ है कै हरैक मिनख नैं किणी भी सिकायत रै निवेड़ै सारू संध या राज्य रै किणी भी अधिकारी या प्राधिकरण नैं संध में या राज्य में किणी भी सूरत में बरतीजण वाळी किणी भी भासा में अभियोग देवण रौ अधिकार है।
दूजी कांनी भांत भांत री भासावां नैं न्यारौ-न्यारौ दरजो देवणौ हकीकत में कैई भासावां सारू खास अधिकार व्हैणै अर दूजां रै सारू कमी नैं दरसावै अर आ भेद भाव री हालत कळै री मूळ जड़ है। लोकतांत्रिक दीठ सूं बण्यौ कोई भी भासा संस्कृति कानून दूजी भासावां नैं इण भांत री असमानता नैं ही थापित करै। ओ हळाहळी लोकतंत्र रौ मजाक है! अन्याव अर असमानता रौ छेकड़लो नाकौ है।

विनोद सारस्वत (बीकानेर)

{नूवी राजस्थानी कहाणी} हरखियो चमगूंगो व्हैग्यौ !!

म्हैं हूं हरखू, मां बाप रो मोबी बेटो। म्हारौ जलम राजपुतानै रै बांगद्सर गाँव में 4 जुलाई, 1948 नैं धोळै दोफारै ढाई बज्यां व्हियौ। म्हारै जलम रौ उच्छब घणै लाडां-कोडां मनाईज्यौ। म्हैं जिण वगत मां री ओझरी में पळ रैयो हो उण वगत राठौड़ी राज खतम व्हैग्यौ हो नैं इण राजपुतानै रौ नूंवै जलम्यै देस में विलय हुयग्यौ। राठौड़ी राज रै जावण अर नूंवै आजाद देस रै बायरै बिचाळै मां री ओझरी में लटपटावै हो उण वगत म्हारै गांव में भी नूंवी आजादी अर नूंवै देस में भिलन रे हरख में ढोल धुराईजै हा। इण गांव में म्हैं सगळा सूं न्यारौ-निरवाळौ हो। म्हारो नाव जरुर हरखियो हो पण हरख म्हारे नेड़े आगे ई नी हो.
म्हनैं जलम री घूंटी किण पाई म्हनैं इण रौ हाल भी ज्ञान कोनी हो। म्हारै मांय गांव रा सगळा टाबरां सूं न्यारा संस्कार मतोमत ही फळै हा। म्हारा बापजी घणा सीधा-साधा नैं मैंणत-मजूरी कर नैं धाकौ धिकावै हा। म्हैं म्हारी मां नैं घणी बैळां पूछ्या करतो ‘‘मां म्हैं सगळा सूं न्यारौ-निरवाळौ क्यूं हूं ? अर म्हारा हाव-भाव नैं बोली-चाली न्यारा कींकर है? म्हैं जद भी म्हारी मां नैं ओ सवाल पूछतो, मां कोई पडूतर नीं देवंती अर आप री पूठ फोर लेंवती। म्हैं मां रै इण बरताव सूं मन ई मन में घणौ मोसीजतो। म्हारै सवाल रौ पडूतर किणी रै खनै नीं हो।
ु अेक दिन चाणचकै गेलै मांय दाई मां मिळगी, म्हैं उण रौ गेलौ रोक नैं म्हारै मन री बात उण रै सांमी परकासी। अेकरकी तो वा ओला लेंवती थकी टाळमटोळ करती रैयी, जद म्हैं उण नैं उण रै नैम-धरम री सौगन देय दी तो वा ढीली पड़गी अर मन री गांठा खोलण ढूकगी।
बा बोली! आज तूं म्हारै नैम-धरम री सौगन देय दी तो सुण मोटयार! म्हैं थनैं इस्सै राज री बात बताउं, पण थनैं छाती काठी राखणी पड़सी अर इण नैं विधी रो विधाण समझ’र केवटणो पड़सी। म्हैं कैयो दाई मां आप बतावौ तो खरी कै इस्सी कांई बात है? जिकी बरसां सूं म्हारै हिवड़ै में लाय लगाय राखी है अर मनड़ै मांय घणी उथळ-पुथळ मच्यौड़ी है!
तद सुण हरखा !! थारी मां रा चाल-चलण ठीक नीं हा, थारौ बापू काम में इत्तौ लैलीन रैंवतो कै उण नैं घर कांनी ध्यान देवण रौ वगत ईज नीं मिलतो। उण वगत गांव में आजादी रा हाका करणिया कैई जणा नित उगै गांव में आंवता रैंवता। म्हैं जिसी सुणी उण मुजब थारी मां अेक परदेसी रै माया-जाळ में फस्यौड़ी ही अर उण रै सागै खांवती-पींवती ही अर अेक दिन तो म्हैं म्हारी निजरां सूं इण नैं देखी तो म्हनैं आभौ फाटतो सो दीख्यौ अर इत्ती सरम आई कै कदास आ धरती माता फाट ज्यावै अर म्हैं इण में समा ज्यावूं!
म्हनैं देखतां ही वो परदेसी तो उठै सूं तेतीसा मनायग्यौ अर उण दिन पछै तो वो गांव में ईज नी दीख्यौ। थारी मां लाज-सरम सूं दोवड़ी व्हियौड़ी आंसूड़ा राळण लागगी। म्हारा पग काठा झाल लीना अर आप रौ दुखड़ौ सुणावती कैयो - काकीसा, वो परदेसी घणौ छळगारौ हो, म्हनैं भोळी-भाळी नैं किंया आप रै आंटै में फसाली म्हनैं लखाव ही नीं पड़यौ। अबार म्हारै पेट में उण री तीन मईनां री सैनाणी पळै। उण रै मन री मांयली पीड़ म्हनैं साफ दीखै ही, बा आगे बोली काकीसा! म्हारी जिसी कुळ-कळंकी नैं जीवण रौ कोई हक कोनी। इत्तो कैय नैं बा गांव रै जोहड़े कांनी व्हीर हुंवती कैयौ अबै जीवण में कोई भदरक कोनी। म्हैं इण जोहड़ा में डूब नैं म्हारै पाप नैं धोवूंला।
म्हैं उण रौ बूकियौ पकड़ नैं रोकी अर कैयो-अबै हुगी जिकी तो हुगी उण नैं तूं जाणी का म्हैं जाणी। उण आवण वाळै जीव नैं मार नैं पाप री भागी क्यूं बणै? म्हारै हिंवळास सूं बा थोड़ी संभळी अर मरण रौ मतो टाळ दियौ अर म्हनैं कैयो-काकीसा आप नैं म्हारी सोगन है जै इण बात नैं किणी रै आगे परकासी तो। म्हैं उण नैं भरोसो दियो जद वा मानी। इत्तो सुणतां ही हरखियो चमगूंगो सो व्हैग्यौ, दायी मां उण नैं घणौ ही हरखा, औ हरखा कैय नैं बतळायौ पण वो अेकदम मून धारली। वां दोवां नैं इण भांत देख नैं गांव रै टाडै उपर लोगां रौ मगरियो सो मंडग्यौ। हरैक रै मूंडै सूं फगत अेक ही बोल नीसरै- हरखा , ओ हरखा , हरखा, ओ हरखू पण पाछौ कोई पडूतर नीं मिलै। पछै अेक टेर औरू सुणीजै! वा स्यात उण रै घर-परिवार अर कुटुम्ब-कड़ूम्बै आळां री ही। हरखिया रै .......... ओ हरखिया ....... हरखिया रै ................ ओ हरखिया ............... हरखिया रै -------------- हरखिया रै -----------.!
विनोद सारस्वत,
बीकानेर

राजस्थान रै रूळियार राज रौ देखो खेल!

राजस्थान रै रूळियार राज रौ देखो खेल!

राजस्थान री सरकार रै षिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल रौ आज रै अखबारां में छपियौ बयान कै ‘‘हिन्दी राजस्थान की मातृ भासा है’’। इण बयान सूं साफ लखाव व्है कै राजस्थान रै षिखा मंत्री नैं इण बात रौ इज लखाव कोनी कै उण री मायड़ भासा कांई है अर ओ मिनख आप रै नांव रै आगे मास्टर सबद औरूं लगावै जिकौ मास्टर सबद नैं भी लाजां मारण वाळो है। कोई भंवरलाल सूं पूछै कै थारै घर री धरयाणी, थारी मां अर बाप आ भासा बोल सकै। कांई थांरी मां थनै हिन्दी में ही हालरिया हुलराया हा। वाह रै भंवरलाल थूं तो सफां ई गत गमाय दी। थूं नांव रै आगे मास्टर सबद लगावै नण नैं भी लाजां मारद्यौ। ठा नीं थारै पढायोड़ा टाबर भी किसाक भण्या हुसी।
    थूं तो राजनीति रौ कक्को सीख’र मंत्री कांई बणग्यो मायड़ भासा नैं ई भूलग्यौ, मां सबद नै भी लाजां मार दियौ। इतिहास कदैई माफ नीं करैला। राजस्थान रा मुख्यमंत्री री अकल सरावौ कै मायड़ भासा रौ माण गमावणियै नैं षिक्षा मंत्री कांई जाण नैं गमायौ। कांई करै बापड़ो गहलोत उण नैं कोटे रै हिसाब सूं मंत्री बणावणो पड़ियो, क्यूंकै ओ रोळराज बिना कोटे रै नीं चालै।
    जदि राजस्थान रै मुख्यमंत्री में थोड़ी सी सरम भी बाकी है तो वांनै चाईजै कै इसै मंत्री नैं हाथूंहाथ मंत्रीमंडल सूं बारै काढै।  जिकौ मुख्मंत्री राजस्थान री विधान सभा सूं राजस्थानी भासा नैं संविधान री आठवी सूचि में भेळण रौ प्रस्ताव सरब सम्मति सूं पारित करायो हो जद वांरौ षिक्षा मंत्री इण भासा रौ माण कम करण रौ काम क्यूं कर रैयो है। जद सगळा लोग आ जाणै कै हिन्दी राजस्थान प्रदेस री राज भासा है अर राजस्थानी लोगां पर भारत री सरकार माडाणी थरपी है। राजस्थानी अठै रै लोगां री मायड़ भासा है अर उण री मानता नैं लेय’र आंदोलन चाल रैयो है तो षिक्षा मंत्री रौ बयान आग में घी घालण रो ईज काम करैला। जय राजस्थान जय राजस्थानी।
विनोद सारस्वत (बीकानेर)

Rajasthani, Be the medium of instruction in Rajasthan

Rajasthani, Be the medium of instruction in Rajasthan
 
Golden opportunity to correct mistake

Gandhi's words - 'the children rather than their mother tongue in second language education, they tend to suicide itself.'

Trigun Sen Committee report should be elementary education through mother tongue. Education Minister of Rajasthan on the other hand Master Bhanwaralal childish statement published in newspapers in the state that currently the mother tongue is Hindi. Dularti us in a language that is the mother, tells Aloriaan, we thrive to have a sacrament of the language - are growing, that is our mother tongue. Pity the Minister's statement and strip for them raises some questions in mind. Hon'ble Minister of State are the same. What their mother tongue is Hindi? Aloriaan they heard from their mother in Hindi language. Marriage ceremonies, etc. in Hindi as their songs are at home? In Hindi they ask for votes? People communicate in Hindi do? The Mahanuha merely so - little experience, they have no right to continue education minister of Rajasthan. After independence through education in Rajasthan in relation to decisions which were wrong to correct that mistake and now has a golden opportunity if the Government of Rajasthan, Gandhi's ideas at all respects the state compulsory education through mother tongue in the immediate The rules should apply. Rajasthan Education - Policy - makers should follow up on these ideas of Gandhi - "the medium of instruction should be changed so completely and at all costs, and regional languages should get their legitimate place. It Kabila - punishment waste daily - B - day is, so instead I prefer to temporarily become chaos.' Gandhi from personal experience, it was convinced that education until the child's mother tongue is passed through, the full powers of the child to develop and fully support him in his social life for its own well-proven unable to make it worth. Kumarppa India, Gandhi's ideas in the editing based on "the medium of instruction booklet called ' do their word, 'mother tongue just as natural for human development as a small child's body for the development of breast milk. Child learns from his mother, his first text. So I for children's mental development on the mother's native language to load a language other than sin understand.' Gandhi was the guilt of the fact that he did not get primary education in their mother tongue, Gujarati. He wrote that as much as mathematics, geometry, algebra, chemistry and four years he began learning astrology, rather than Gujarati into English would read more easily learned in one year is the same. Moreover Gandhiji believed that through the reading of his Gujarati Gujarati शब्दज्ञान would have been enriched and that knowledge is used in your home. Gandhi's clear that learning through mother tongue other than receiving an impassable gulf between the boy and his relatives occurs. 'Harijan Sewak and' 'Young India', Gandhiji called the letters written numerous articles about the issue. To honor his mother tongue, he said Jivenadayini every - effort needs expressed. He said - "in my native language so the holes might be, I'll be pressed to her the same way, the way of his mother's breast. That I can give life to provide milk.'Kabila - to look into it, in which Gandhi wrote - "I believe that the children of the nation rather than their mother tongue in second language education, they tend to suicide itself.' The question arises that how long we will keep pushing our children to suicide? 64 consecutive years and receive education through mother tongue rather than in spite of other people of Rajasthan, the mother of my mind - could not be separated if no language is so that our existence not fade. English medium schools, the children play - play it if there is a mother humming lines of poetry - the language itself is Prasfutith. Rajasthan Rajasthani language of textbooks in schools even if not, but still native teachers to teach each subject's typical of colloquial words just have to use. A teacher of English based on their experiments found that English language skills in Rajasthan through Rajasthan great ease and can be delivered quickly. Not correct in theory, the reality is that today practically in Rajasthan Hindi subject knowledge has to get itself through the Rajasthani. Using their native language in teaching the teachers are able to place in the hearts of children and teachers from the boy's psyche acquired knowledge becomes permanent on the table. Rahul Sankrityaan about the same thing in terms Rajasthani strongly advocated. He said - "Education through mother tongue should be, if this principle be accepted so long engaged in the withdrawal from Rajasthan illiteracy. Rajasthan's population will be a long Haanqui like sheep. So the first need to be made Rajasthani language medium of instruction.'Rajasthan Rajasthani children should be provided only through education, then it may prove more effective. Other speaking residents of Rajasthan but also we do not advocate it be imposed. Punjabi, Sindhi, Gujarati or Hindi medium education etc. wishing to take children to receive education in their mother tongue should be the facility.
Writer Is Allready Working In Education Department Rajasthan And Writer Of Rajasthani Literature.

रंगीलो राजस्थान

रंगीलो रास्था

राजस्थान रंगीलो प्रदेस। राजस्थान नै परम्परागत रूप सूं रंगां रै प्रति अणूंतो लगाव। सगळी दुनिया रो मन मोवै राजस्थान रंग।
बरसां पैली नेहरूजी रै बगत नागौर में पंचायत राज रो पैलड़ो टणको मेळो लाग्यो। २ अक्टूबर, १९५९ रो दिन हो। राजस्थान रा सगळा सिरैपंच भेळा हुया। नेहरूजी मंच माथै पधारिया तो निजरां साम्हीं रंग-बिरंगा साफा रो समंदर लहरावतो देख'र मगन हुयग्या। रंगां री आ छटा देख वां री आंख्यां तिरपत हुयगी। मन सतरंगी छटा में डूबग्यो। रंगां रै इण समंदर में डूबता-उतरता गद्-गद् वाणी में बोल्या- ''राजस्थान वासियां! थै म्हारी एक बात मानज्यो, आ म्हारै अंतस री अरदास है। वगत रा बहाव में आय'र रंगां री इण अनूठी छटा नै मत छोड़ज्यो। राजस्थानी जनजीवण री आ एक अमर औळखांण है। इण धरती री आ आपरी न्यारी पिछाण है। इण वास्तै राजस्थान रो ओ रंगीलो स्वरूप कायम रैवणो चाइजै।''
राजस्थानी जनजीवण रा सांस्कृतिक पख नै उजागर करता पंडतजी रा ऐ बोल घणा महताऊ है। 'रंग' राजस्थानी लोक-संस्कृति री एक खासियत है। अठै कोई बिड़दावै, स्याबासी दिरीजै तो उणनै 'रंग देवणो' कहीजै- 'घणा रंग है थनै अर थारा माईतां नै कै थे इस्यो सुगणो काम करियो।' अमल लेवती-देवती वगत ई जिको 'रंग' दिरीजै उणमें सगळा सतपुरुषां नै बिड़दाइजै।
राजस्थान री धरती माथै ठोड़-ठोड़ मेळा भरीजै। आप कोई मेळै में पधार जावो- आपनै रंगां रो समंदर लहरावतो निगै आसी। लुगायां रो रंग-बिरंगा परिधान आपरो मन मोह लेसी। खासकर विदेसी सैलाणियां नै ओ दरसाव घणो ई चोखो लागै। इण रंगां री छटा नै वै आपरै कैमरां में कैद करनै जीवण लग अंवेर नै राखै।
राजस्थानी पैरवास कु़डती-कांचळी अर लहंगो-ओढणी संसार में आपरी न्यारी मठोठ राखै। लैरियो, चूंनड़ी, धनक अर पोमचो आपरी सतरंगी छटा बिखेरै। ओ सगळो रंगां रो प्रताप।
इणीज भांत राजस्थानी होळी एक रंगीलो महोच्छब। इण मौकै मानखै रो तन अर मन दोन्यूं रंगीज जावै। उड़तोड़ी गुलाल अर छितरता रंग एक मनमोवणो वातावरण पैदा करै। रंगां रो जिको मेळ होळी रै दिनां राजस्थान में देखण नै मिलै, संसार में दूजी ठोड़ स्यात ई निजरां आवै।
मानवीय दुरबळतावां रै कारण साल भर में पैदा हुयोड़ा टंटा-झगड़ा, मन-मुटाव अर ईर्ष्या-द्वेष सगळा इण रंगीलै वातावरण में धुप नै साफ होय जावै, मन रो मैल मिट जावै।
इण रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी रै मंगळ मौकै आपां नै आ बात चेतै राखणी कै वगत रै बहाव में आय'र भलां ई सो कीं छूट जावै पण आपणी रंग-बिरंगी संस्कृति री अनूठी छटा बणायां राखणी।

कंवल उणियार रो लिखियोड़ो दूहो बांचो सा!

चिपग्या कंचन देह रै, कपड़ा रंग में भीज।
सदा सुरंगी कामणी, खिली और, रंगीज।।
 
 
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म्हारी जबान पर ताळो क्यूं

म्हारी जबान पर ताळो क्यूं

-डॉ. भरत ओळा

राजस्थानी री मानता सारू लाम्बै बगत सूं आंदोलन चालै। लारलै दस बरसां में ओ आंदोलन गति पकड़्यो है अर जन आंदोलन बणतो जा रैयो है। संघर्ष समिति लगोलग धरणा-प्रदरसण करै अर रैलियां काढै। 3 मार्च, 2003 नै राजस्थान विधानसभा रै साम्हीं प्रदरसण कर्यो अर उण वगत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सूं संघर्ष समिति री बंतळ हुयी। 25 अगस्त, 2003 नै राजस्थान विधानसभा में राजस्थानी री संवैधानिक मानता सारू सर्व सम्मति सूं संकळप प्रस्ताव भी पारित हुयो। अबै केन्द्र सरकार नै आठवीं अनुसूची में राजस्थानी भाषा नै भेळी करणी है अर आ आज नीं तो का'ल भेळी हुय जासी।
राजस्थानी रै हेताळुवां साम्हीं अर दूजा भायां रै मगज में कीं सवाल सदीव उठता रैवै कै राजस्थानी भाषा कुणसी है? उणरी साहित्यिक-व्याकरणिक ताकत किसी'क है? आ राज री मानता री हकदार है'क नीं? है तो आज तांईं मिली क्यूं कोनी? राज री मानता सूं कांईं हुसी? आ क्यूं जरूरी है? मिल्यां कांईं-कांईं फायदा अर नीं मिल्यां कांईं-कांईं घाटा? और घणा ई सवाल है जिकां रो पडूत्तर आम मिनख नै मिलणो चाइजै।
इण में कोई दो राय कोनी कै राजस्थानी आखै जगत री सबळी भासावां मांय सूं एक है। आपणी भासा खासी जूनी पण नांव नूंवो। राजस्थान सबद सै सूं पैली कर्नल जेम्स टॉड आपरी पोथी 'एनल्ज एण्ड एटिक्विटीज ऑफ राजस्थान' (1828 ई.) में बरत्यो। इणी आधार पर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन आपरी पोथी 'लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' (1907-08 ई.) में राजस्थान सूबै री भाषा सारू 'राजस्थानी' सबद बरत्यो। जार्ज ग्रियर्सन सूं पैली राजस्थानी भाषा सारू मरुभाषा, मरुवाणी, मरुदेसीय भाषा, मरुभूम भाषा आद नांव लाधै। जिकी थोड़े घणै स्थानीय बदळाव साथै आखै राजस्थान में बोलीजै। सम्वत 835 में उद्योतन सूरि रचित 'कुवलयमाला' में मरुभोम रो लेखो-जोखो लाधै। 18 देसी भाषावां रै साथै इण पोथी में मरुभाषा रो नांव पण गिणाइज्यो। अबुल फजल 'आइन-ए-अकबरी' में ठावी-ठावी भारतीय भाषावां में मरुभाषा नै गिणाई है। मरुभाषा एक मोटो नांव है जिकै मांय उणरी सगळी बोलियां भेळी है जिकी रो नांव है 'राजस्थानी'।
बातां तो और भी करस्यां। करता रैस्यां। पण आज सोचो, आपणी ईं लूंठी भासा नै मानता क्यूं कोनी। राजनेतावां सूं सवाल करो- सगळी भासावां नै मानता, राजस्थानी नै टाळो क्यूं? म्हारी जबान पर ताळो क्यूं?

राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान

राजस्थानी राखियां,

रहसी राजस्थान


-मनोज कुमार स्वामी, सूरतगढ़
भेदभाव तो सदियां सूं चालतो आयो। पण राजस्थानी भाषा साथै कीं बेसी। राजस्थान रा रैवासी आपरी भाषा री मानता री लड़ाई लड़ै, पण गांधीवादी ढंग सूं। कुरसी बिराज्या नेता बां री अरज सुणै कोनी। वोटां वगत तो लुळ-लुळ हाथ जोड़ै। पगां पड़ै। इलाकै रै विकास री बातां करै। पण चुणाव जीततां पाण गधै रै सींगां ज्यूं अदीठ व्है जावै। चुणाव री वगत मीठी गोळी देवै। पण पछै भाषा अर भाषा रा हेताळुवां नै भूल जावै। दीनाजपुर (बंगाल) मांय सन् 1944 मांय अखिल भारतीय राजस्थानी सम्मेलन नांव सूं बडो जलसो हुयो। तद सूं लेय' अजे तक आंदोलन लगोलग चाल रैयो है। पण अजे पार कोनी पड़ी। दुनिया रो कोई इस्यो देस कोनी जठै रै लोगां नै आपरी भाषा सारू इत्तो लाम्बो आंदोलन चलावणो पड़्यो हुवै। कोई इसी भाषा कोनी दुनिया में जिकी री इत्ती बेकदरी होयी हुवै। मां सूं आछो कीं नीं हुवै जगत में। भाषा तो आपणी मां है। मायड़भाषा रो मान करणो भूल बैठ्या अठै रा वासी। पण फेर लखदाद है बां हेताळुवां नै जका लगोलग मायड़भाषा नै मान दिरावण री लड़ाई लड़ै। लड़ता थकै कोनी। मायड़भाषा सनमान जातरा जकी श्रीगंगानगर सूं 21 फरवरी, 2003 नै सरू हुय' राजस्थान रा उगणीस जिलां नै पार करती 4 मार्च, 2003 नै दिल्ली पूगी। भाषा नै लेय' एक अनूठी जातरा ही। इसी मिसाल और कठै नीं मिलै।
संविधान री आठवीं अनुसूची में सामल होवण रा सगळा मापदण्ड राजस्थानी भाषा पूरा करै। पण नेतावां नै दीसै कोनी। लाखूं ग्रंथ ग्रंथागारां में हाथां लिख्योडा पड़्या है। जे ना जचै तो जाय' आपरी आंख्यां सूं पड़तख देखल्यो। पण देखल्यै कुण? तो जाण-बूझ' कानां में कोइया लेवै। जींवतां नै तळै नाखै। दिल्ली जाय' ओळमो देवो तो खाणै ऊंठ ज्यूं सीधा आवै। धिरकार है मायड़ रै इस्यै कपूतां नै, जका आपरी मां-भाषा रो मान नीं करै। नेतावां री अणदेखी रै बावजूद राजस्थानी आपरो रुतबो कायम राख्यो है। आठवीं अनुसूची मांय भेळी हुयां बिना केन्द्रीय साहित्य अकादेमी सूं मान्यता है। बोर्ड, विश्वविद्यालयां अर यू.जी.सी. रै पाठ्यक्रमां मांय सामिल है। मतलब 11 वीं सूं लेय' एम.. तांईं री पढ़ाई राजस्थानी विषय लेय' करी जा सकै। यू.जी.सी. रै नेट में राजस्थानी है। टी.वी. अर रेडियो पर राजस्थानी समाचारां रा बुलेटिन आवै। राजस्थानी कलाकारां री दुनियां में न्यारी पिछाण है। सैकड़ूं पत्र-पत्रिकावां छपै। राज्य री राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी है। भाषा जण-जण रै काळजै रची-बसी है। तो पछै कांईं कमी है? कमी है तो बस आठवीं अनुसूची में सामल होवणै री। म्हारो नेतावां सूं सवाल है कै जे आप राजस्थानी री मानता री बात नीं करो अर राजस्थानी नै भाषा नीं मानो तो पछै राजस्थानी रै नांव पर ऊपर लिखी बातां क्यूं? सवाल भी काळजै में बार-बार हूक-सी उठावै कै जद 22 भाषावां नै राज मानता तो पछै राजस्थानी साथै दुभांत क्यूं? अमरीका सरकार जिकी भाषा नै सनमान बगसै बीं नै भारत सरकार क्यूं कोनी मानै? जालोर रा लालदासजी राकेश लिखै-

ओ जीवण तो जावसी, दे माथो रख मान।
राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान।।
आजादी आई अठै, ताळा जड़्या जुबान।
राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान।।