इंटरनेट पर राजस्थानी राज

इंटरनेट पर राजस्थानी राज
 

अजय कुमार सोनी
इंटरनेट पर राजस्थानी राजराजस्थानी भाषा को ख्याति दिलाने में इंटरनेट भी एक सशक्त जरिया बना है। नेट पर राजस्थानी को हर किसी ने चाहा तथा सम्मान दिया है। सरकारी वेबसाइटों पर भी अब राजस्थानी देखने को मिल रही हैं। श्रीगंगानगर जिला इस पहल की शुरुआत करने वाला पहला जिला है। इस जिले की सरकारी वेबसाईट पर राजस्थानी को सबसे पहले शामिल किया गया है। इंटरनेट पर राजस्थानी को अपनी पहचान दिलाने के लिए ब्लॉग सशक्त माध्यम बनकर उभरे हैं, इंटरनेट पर राजस्थानी भाषा और साहित्य के प्रचारक तथा साहित्यकार इन माध्यमों से निरंतर जुड़ रहे हैं।
राजस्थानी के ब्लॉग जो अभी तक सामने आएं हैं, उनमें राजस्थान की भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के साथ-साथ दूसरे विषयों की जानकारी भी देखने में आती हैं। इंटरनेट पर राजस्थानी कीजो वेब-पत्रिकाएं सामने आई हैं, वे इस प्रकार हैं- सत्यनारायण सोनी और विनोद स्वामी संपादित 'आपणी भाषा-आपणी बात'
 , राव गुमानसिंह राठौड़ का 'राजस्थानी ओळखांण', नरेन्द्र व्यास का 'आखर अलख' व 'आखर कलश', दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का 'जोग-लिखी', पतासी काकी का 'ठेठ देशी', नीरज दईया की मासिक वेब पत्रिका 'नेगचार', मायामृग का 'बोधि वृक्ष', राजस्थानी कविता कोश, जिसके संचालक प्रेमचंद गांधी हैं।
राजस्थानी के रचनाकारों के ब्लॉग में ओम पुरोहित 'कागद' का 'कागद हो तो हर कोई बांचै'
 
, रामस्वरूप किसान की राजस्थानी कहानियों का ब्लॉग
 
, संदीप मील का 'राजस्थानी हाईकू'
 
, 'बहती धारा'
 
, राव गुमानसिंह राठौड़ के 'राजिया रा दूहा'
 
, 'सुणतर संदेश'
 
, सत्यनारायण सोनी की राजस्थानी कहानियों का 'धान कथावां'
 
, शिवराज भारतीय का 'ओळूं'
 
, संग्राम सिंह राठौड़ का 'स्व. चंद्रसिंह बिरकाळी री रचनावां'
 
, डॉ. मदनगोपाल लढ़ा का 'मनवार'
 
, पूर्ण शर्मा 'पूरण' का 'मायड़ भाषा'
 
, जितेन्द्र कुमार सोनी (आई.ए.एस.) का 'मुळकती माटी'
 
, कवि अमृतवाणी का 'राजस्थानी कविता कोश'
 
, डॉ. नीरज दईया के 'सांवर दईया'
 
, 'राजस्थानी कवितावां'
 
, 'नेगचार'
 
, 'राजस्थानी ब्लॉगर'
 
'अनुसिरजण'
 
, डॉ. दुष्यंत का 'रेतराग'
 
, रवि पुरोहित का 'राजस्थली
 
', दीनदयाल शर्मा के 'टाबर टोळी'
 
, राजेन्द्र स्वर्णकार का 'शस्वरं
 
', अंकिता पुरोहित का 'कागदांश'
 
, किरण राजपुरोहित 'नितिला' का ''सिणगार'
 
, 'भोर की पहली किरण'
 
, संतोष पारीक का 'सांडवा', अजय परलीका का 'भटनेर'
 
व राजस्थानी गीतों का संग्रह 'बुगचो'
 
, दुलाराम सहारण के 'हरावळ'
 
, 'साहित्यकार दर्शन'
 
, 'आगीवांण'
 , 'हेलो' व 'पोथीखानो'
 
, नंद भारद्वाज का 'हथाई'
 
, पुखराज जांगिड़ का 'जय रामधनी'
 
, मोनिका शर्मा के 'तीज तैंवार'
 व 'मेरी परवाज'
 
, शिवराज गूजर के 'सिनेमा फेस्टिवल'
 
'मेरी डायरी'
 
, हरीश बी. शर्मा का 'मरूगंधा'
 , अलबेला खत्री का 'म्हारो प्यारो राजस्थान'
 
, उम्मेद गोठवाळ का 'अभिव्यक्ति'
 
, कुमार गणेश का 'रेजगार'
 
, चैनसिंह शेखावत का 'मायड़ रो गोथळियो'
 
, जोगेश्वर गर्ग का 'गूंगै रा गीत'
 
, सोहनलाल रांका का 'कवि सहज'
 
, डॉ. मदन सैनी, डॉ. मंगत बादल
 
, राजूराम बिजारणियां
 
, कविता किरण
 
, राजेश चड्ढ़ा
 
, सवाई सिंह शेखावत, संजय पुरोहित, सुनील गज्जाणी, हरीश भादाणी
 
, किशोर पारीक
 
, कृष्णा कुमारी
 
, चंद्र प्रकाश देवल
 
, निशांत
 
, पुरूषोत्तम यकीन
 
, बिहारी शरण पारीक
 
, मणि मधुकर
 
, मनोज कुमार स्वामी
 
, मालचंद तिवाड़ी
 
, रामेश्वर गोदारा 'ग्रामीण'
 
, लीटू कल्पनाकांत
 
आदि।
इंटरनेट पर राजस्थानी की मूल रचनाएं तथा अनूदित रचनाएं बहुत-सी पत्रिकाओं में निरंतर छपती रहती हैं। जिनमें- 'हिन्दी कविता कोश'
 
, नरेश व्यास का 'आखर कलश'
 
, प्रेमचंद गांधी का 'प्रेम का दरिया'
 
, रविशंकर श्रीवास्तव का 'रचनाकार'
 

राजस्थानी भाषा की मान्यता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के ब्लॉग भी हैं। जिनमें- कुंवर हनवंतसिंह राजपुरोहित के 'मरुवाणी'
 
'म्हारो मरुधर देश'
 
, विनोद सारस्वत का 'मायड़ रो हेलो'
 
, सागरचंद नाहर का 'राजस्थली'
 
, अजय कुमार सोनी के 'मायड़ रा लाल'
 
, 'राजस्थानी रांधण'
 
, राजस्थानी गीत गायक प्रकाश गांधी और जितेन्द्र कुमार सोनी के भी राजस्थानी ब्लॉग हैं।
राजस्थान के बारे में संपूर्ण जानकारियों को राजस्थानी भाषा में प्रस्तुत करने वाली प्रमुख वेब साईट- 'आपांणो राजस्थान'
 
है, जिसे इसरो के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. सुरेन्द्र सिंह पोकरणा संचालित कर रहे हैं।
इंटरनेट पर कई गांवों के भी ब्लॉग हैं जो राजस्थानी में हैं- सत्य दीप का 'मेरो गाँव'
 
, रतन सिंह शेखावत का 'मेरा गांव भगतपुरा'
 
की माध्यम भाषा तो हिन्दी है, परन्तु राजस्थानी चित्र व ऑडिया-वीडियो भी हैं। अब तो अत्यंत खुशी की बात है कि जल्द ही ऑनलाइन राजस्थानी टेलिविजन और रेडियो खुलने वाले हैं। जिन पर राजस्थानी में ही प्रसारण किया जाएगा। जिसकी पहुंच प्रवासी राजस्थानियों तक भी होगी। ऑनलाइन राजस्थानी टेलिविजन बतौर प्रयोग शुरू कर दिया गया है, जिसमें अभी रोजाना राजस्थानी गीत लगाए जाते हैं। इसका नाम अभी 'मरुवाणी'
 
रखा गया है और इसके सूत्रधार कुंवर हनवंतसिंह राजपुरोहित हैं जो लंदन में अपना कारोबार करते हैं।

फेसबुक पर राजस्थानी

फेसबुक पर भी राजस्थानी को अत्यंत सम्मान मिला है। फेसबुक पर राजस्थानी का सूत्रपात करने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार ओम पुरोहित 'कागद'
 
का नाम गर्व से लिया जाता है। पिछले छ: महीनों से फेसबुक पर राजस्थानियों की संख्या में इजाफा हो रहा है तथा संवाद की माध्यम भाषा राजस्थानी बनी है। फेसबुक पर मुख्यत: राजस्थानी के साहित्यकार डॉ. नीरज दईया
 
, डॉ. सत्यनारायण सोनी
 
, रामस्वरूप किसान
 
, माधोसिंह मूंड
 
, अंजली पारेख
 
, सिया चौधरी
 
, अंकिता पुरोहित
 
, अनिल जांदू
 
, हनवंतसिंह राजपुरोहित
 
, विनोद सारस्वत
 
, भाषाविद् लखन गौसाईं
 
आदि। फेसबुक पर राजस्थान के निर्वाचित सांसद और विधायक भी राजस्थानी के लिए जुड़े हुए हैं, जिनमें बीकानेर सांसद अर्जुनराम मेघवाळ
 
, पूर्व राज्यमंत्री जोगेश्वर गर्ग
 
, नागौर सांसद ज्योति मिर्धा आदि।

पाकिस्तान में राजस्थानी

इंटरनेट के माध्यम से दुनियाभर के लोग पाकिस्तान में पसरी राजस्थानी संस्कृति से निरंतर परिचित हो रहे हैं। फेसबुक पर कई ऐसे वीडियो शेयर किए गए हैं जिनमें पाकिस्तान के कई राजनेता जनसभाओं को वहां के एक बड़े भू-भाग की जनभाषा राजस्थानी में संबोधित करते हुए देखे-सुने जाते हैं।
 
पाकिस्तान में राजस्थानी लोकसंगीत की भी धूम है, जिनके वीडियो भी बड़ी तादाद में शेयर किए गए हैं।
केन्द्र सरकार की उदासीनता के चलते राजस्थानी की मान्यता का सवाल अधरझूल में पड़ा है। इन उपलब्धियों को देखते हुए केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह राजस्थानी भाषा को तत्काल संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करे।


Regards
Ajay Kumar Soni
VPO- Parlika, Teh- Nohar, Dist- Hanumangarh
(Rajasthan) PIN- ३३५५०४
E-Mail- ajay@parlika.com
Mobile- 96024-12124

वरिष्ठ साहित्यकार श्री ओम पुरोहित 'कागद' जी रो राजस्थान रै सांसदा नै कागद

घणां मानीता अनै आदरजोग सांसद सा ,

                 जय राजस्थानी-जय राजस्थान !
 

               आप उण रजस्थान रा घणां हेताळू अनै म्होबी सांसद हो जिण री मायाड़ भाषा राजस्थानी है ! आप ओ भी जाणो हो कै राजस्थान रो नांव ई राजस्थानी भाषा रै ताण थरपीज्यो हो ! आज आज़ादी रै ६३ सालां बाद भी १३ करोड़ राजस्थानी आपरी मायड़ भाशा राजस्थानी री राजमानाता सारू बिलखै ! आपां दुनियां री लूंठी भाषा रा मालक होंवता थकां ईं ग्राम पंचायत सूं लेय’र संसद तांई में आपरी मायड़ भाषा राजस्थानी में नी बोल सकां ! आज़ादी सूं लेय’र हाल तांईं अबोला हां ! आपणी जुबान माथै ताळो है ! संसद में बोलण री दरकार है कै " सगळी भाषावां नै मानता-म्हानै टाळो क्यूं-म्हारी जुबान पर ताळो क्यूं  ?"आप सूं आस है कै आप संसद रै शीतकालीन सत्र में आ बात जोरदार ढंग सूं उठास्यो अनै राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण री मांग मनवास्यो !             
               आपणी मायड भाषा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण सारू  राजस्थान में चाल रैयै आंदोलन सूं आप आच्छी तरियां परिचित हो ! आप राजस्थान में इण पैटै जगरुकता रा पड़तख गवाह भी हो !राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में नीं भेळण सूं होवण आळा घाटा भी आप सूं छाना नीं है ! आज आखो राजस्थान आपणी मायड भाषा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में नीं भेळण रै दुख सूं कितरो दुखी है-आ बात भी आप सूं छानी नीं है ! पूरै देश रा टाबर आपरी मायड भाषा में शिक्षा ले रैया है पण राजस्थान रा टाबर कित्ता निरभागी है कै दुनियां री ऐक लूंठी भाषा रा मालक होंवता थकां परभाषा में प्राथमिक शिक्षा लेवण नै मज़बूर है ! अब "नि:शुल्क एवम अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा अधिनियम" रै आयां तो ओ और भी लाजमी होग्यो कै राजस्थान रा टाबर भी आपरी मायड़ भाषा राजस्थानी में प्राथमिक शिक्षा लेवै ! पण लेवै तो कीयां लेवै ? हाल आपणी मायड़ भाषा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में नीं भेळीजी है ! आप तो जाणो ई हो कै इण बिना आ बिद नीं बैठै सा !
                 आप राजस्थान रा अर राजस्थानी भाषा रा म्होबी बेटा हो ! आप सूं आपरी मायड़ भाषा राजस्थानी आस राखै कै आप उण री आन-बान-स्यान सारू खेचळ जरूर करस्यो । आपरै छेतर  रा लोग भी आस राखै कै आप उणां नै उणां री ज़ुबान दिरावस्यो ! आप नै ध्यान ई है कै राजस्थान विधान सभा सूं मानजोग अशोक जी गहलोत सा राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण रो प्रस्ताव सर्वसम्मति सूं पारित कर लोकसभा में पारित करण सारू केन्द्र सरकार नै भेजियो हो । बो प्रस्ताव बठै लारला सात बरस सूं रुळै है !
आप सूं अरज़ है कै आप मानजोग प्रधानमंत्री जी अर गुहमंत्री जी सूं मिल परा बेगै सूं बेगो राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळण सारू संविधान संषोधन विधेयक ल्यावण री ताकीद करो सा !
राजस्थानी नै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळीज्यां आपरो जस सवायो अनै ऊजळो होसी सा !

आपरो इज हेताळु

ओम पुरोहित"कागद"
२४-दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ संगम-३३५५१२
मोबाइल-०९४१४३८०५७१
 
Email:omkagad@gmail.com

मायड भाषा रा दूहा

मायड भाषा रा दूहा

राजस्थानी भाषा


राज बणाया राजव्यां,भाषा थरपी ज्यान ।
बिन भाषा रै भायला,क्यां रो राजस्थान ॥१॥

रोटी-बेटी आपणी,भाषा अर बोवार ।
राजस्थानी है भाई,आडो क्यूं दरबार ॥२॥

राजस्थानी रै साथ में,जनम मरण रो सीर ।
बिन भाषा रै भायला,कुत्तिया खावै खीर ।।३॥

पंचायत तो मोकळी,पंच बैठिया मून ।
बिन भाषा रै भायला,च्यारूं कूंटां सून ॥४॥

भलो बणायो बाप जी,गूंगो राजस्थान ।
बिन भाषा रै प्रांत तो,बिन देवळ रो थान॥५॥

आजादी रै बाद सूं,मून है राजस्थान ।
अपरोगी भाषा अठै,कूकर खुलै जुबान ॥६॥

राजस्थान सिरमोड है,मायड भाषा मान ।
दोनां माथै गरब है,दोनां साथै शान ॥७॥

बाजर पाकै खेत में,भाषा पाकै हेत ।
दोनां रै छूट्यां पछै,हाथां आवै रेत ॥८॥

निज भाषा सूं हेत नीं,पर भाषा सूं हेत ।
जग में हांसी होयसी,सिर में पड्सी रेत ॥९॥

निज री भाषा होंवतां,पर भाषा सूं प्रीत ।
ऐडै कुळघातियां रो ,जग में कुण सो मीत ॥१०॥

घर दफ़्तर अर बारनै,निज भाषा ई बोल ।
मायड भाषा रै बिना,डांगर जितनो मोल ॥११॥

मायड भाषा नीं तजै,डांगर-पंछी-कीट ।
माणस भाषा क्यूं तजै, इतरा क्यूं है ढीट ॥१२॥

मायड भाषा रै बिना,देस हुवै परदेस ।
आप तो अबोला फ़िरै,दूजा खोसै केस ॥१३॥

भाषा निज री बोलियो,पर भाषा नै छोड ।
पर भाषा बोलै जका,बै पाखंडी मोड ॥१४॥

मायड भाषा भली घणी, ज्यूं व्है मीठी खांड ।
पर भाषा नै बोलता,जाबक दीखै भांड ॥१५॥

जिण धरती पर बास है,भाषा उण री बोल ।
भाषा साथ मान है , भाषा लारै मोल ॥१६॥

मायड भाषा बेलियो,निज रो है सनमान ।
पर भाषा नै बोल कर,क्यूं गमाओ शान ॥१७॥

राजस्थानी भाषा नै,जितरो मिलसी मान ।
आन-बान अर शान सूं,निखरसी राजस्थान ॥१८॥

धन कमायां नीं मिलै,बो सांचो सनमान ।
मायड भाषा रै बिना,लूंठा खोसै कान ॥१९॥

म्हे तो भाया मांगस्यां,सणै मान सनमान ।
राजस्थानी भाषा में,हसतो-बसतो रजथान ॥२०॥

निज भाषा नै छोड कर,पर भाषा अपणाय ।
ऐडै पूतां नै देख ,मायड भौम लजाय ॥२१॥

भाषा आपणी शान है,भाषा ही है मान ।
भाषा रै ई कारणै,बोलां राजस्थान ॥२२॥

मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला,सूनो लागै थार ॥२३॥

जिण धरती पर जळमियो,भाषा उण री बोल ।
मायड भाषा छोड कर, मती गमाओ डोळ ॥२४॥

हिन्दी म्हारो काळजियो,राजस्थानी स ज्यान ।
आं दोन्यूं भाषा बिना,रै’सी कठै पिछाण ॥२५॥

राजस्थानी भाषा है,राजस्थान रै साथ ।
पेट आपणा नीं पळै,पर भाषा रै हाथ ॥२६॥
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घणी घणी राम राम सा....

राम राम सा,

म्है आप सबसूं माफ़ी चावूं कै लारला कई दिन सूं म्है इन्टरनेट पर कोई हलचल नी करी, कारण ओ हो कै म्है जयपुर में भणाई खातर चल्यो गयो हो. आज सूं लगातार सात दिन तक म्है आपरै बीच अठै इज रेस्यूं. नयो माजनो ले'र हाजर होस्युं.

आपरो
अजय कुमार सोनी
परलीका

राजस्थान रौ भविष्य कांई?

आखी दुनिया मानै कै राजस्थानी भासा इण धरती री सबसूं विशाळ साहित्यक भासा है. तमिल अर राजस्थानी दो भासा एड़ी है जिणनै अगर भारत मांय राष्ट्रभासा रौ दरजौ देरीजै तौ ईं कम है.

राजस्थान रै तीन विद्यापिठां (Universities) जोधाणा, बिकाणा अर उदैपर मांय इणनै भणावै अर साथै साथै प्राईवेट इंस्टिट्यूट वाळा ईं भणावै. राजस्थानी री भणाई आप अमेरीका, ब्रिटेन या रुस मांय कर सकौ.

राजस्थानी भासा नै अमेरीका मांय ओफिसियल भासा (राजभासा) रौ दरजौ मिळ्यौड़ौ है साथै साथै संयुक्त राष्ट्र मांय ई इण भासा नै मानता है. आप अमेरीका मांय राजस्थानी मांय अरजी दे सकौ या कोई काम काज करवा सकौ, पण राजस्थान सरकार या आपणी भारत सरकार एड़ौ करणीया नै देसद्रोही (हिंदी विरोधी) मानै अर एड़ा मिनख री अरजी ना मंजुर करिजै इण तर्क रै माथै कै इण भासा नै सांवैधानीक मान्यता कोनीं. आप संयुक्त राष्ट्रसंघ (United Nations) मांय राजस्थानी मांय बोल सकौ पण राजस्थान री विधान सभा मांय राजस्थानी बोलण सूं रोकीजै.

कित्तौ बरदास्त करांला.. आपणां खुद रा नेता आपणी भासा बोलता संकौ करै.

विरभुमी राजस्थान, जठै मरणै नै तैवार मानीजै उण धरती रै लोगां नै औ कांई व्है ग्यौ ??
क्यूं अठै रा लोगां रौ रगत पाणी बण ग्यौ ?

क्यूं राजस्थान रा विर सुरमा हिजड़ा बण ग्या ?

सोचो, कांई आपणौ भविष्य है... सब जागा अंधारौ इज अंधारौ देखीजै.

- हनवंतसिंघ राजपुरोहित

नाम री भूख रेई है अब बाकी

नाम री भूख रेई है अब बाकी

राजस्थानी नै आज मानता नीं मिलण सूं माँ मरुवाणी आज घणी दुखी है. सबसूं ज्यादा दुखी है आं निकरमा, निबला पूतां सूं. कूंट में बड़-बड़ घणी रोवै. पण बा मां में सोचै कै ऐ पूत जाम तो दिया पण ऐ आपरो इज नुकसान करसी. माँ मरुवाणी बेठी देखै अर रोवै आरां करमां नै. बी नै ध्यान है कै ऐ अब ज्यादा दिन नी जीसी, पण ऊपर जायनै के मुंडो दिखासी. बिज्जी, मालचंद तिवाड़ी, लक्ष्मीनारायण जी रंग जिस कई मिनख ऊपर जाय केसी के म्हे ओ काम करयो. भगवन खुद करम ठोकने केसी कै थे लोगां थारी मां रो मां नी करयो, थारी राजस्थानी खातर थे कीं नी करयो. दूजी भाषावां खातर थे मरण पड्या पण थे थारी माँ री इज्जत रो ख्याल नीं राख्यो. आ लोगां नै भगवन कुम्भीपाक नरक देसी. पण म्है भी ऊपर जाय के मुंडो दिखास्यान के म्हे बारां इ वंसज हा. अरै सूत्या मिनखो, जागो थारी माय थारै आँगन में खड़ी पुकारै कै-

जाग-जाग लाडेसर जाग
मां रो काज संवारण जाग
मनै जाण जलम री डाटा
मातभोम बस असली माता
सारो काज संवारण जाग
जाग-जाग लाडेसर जाग!

सजळ नैण तेरी माय खड़ी है
दुःख री बेदी पाँव पड़ी है
तैं पर उणरी आस पड़ी है
मां रो दुःख हटावण जाग
जाग-जाग लाडेसर जाग!

बिज्जी, मालचंद जी, लक्ष्मी नारायण जी आप जागो अर महा जिसा नौजवानां रै तिल्लो लगाओ जिंसूं म्है जग उठां अर मानता ले'र बावड़ा. अब भी जाग्सो तो थारी जय-जैकार व्हेसी. नीं जाग्य तो थानै बदआशीष दियो जासी.
जय राजस्थान!
जय राजस्थानी!!

क्यूं थारी गोमा गाजै रै?

क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
आजाद देश है थांरौ!
फैरूं थांरी किण सूं फाटै रै?
अबै नीं तो ठाकर रैया,
नीं रैयी वा ठकराई
नी रैया वै पातसाह,
नीं रैयी लाटसाही।
राजसाही रूळगी लोकराज में
फैर क्यांरौ संको रै?
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
ओ राज लोक रौ!
लोकां रौ!
लोकां रै सारू!
वोटां री मसीनां सूं
बणै मंतरी जद अठै
जात रै आरक्षण सूं
संतरी जद बणै अठै
पांत में दूभांत री
बात करै क्यूं अठै?
मामै रौ ब्यांव, मा पुरसगारी,
फैर क्यांरी अड़कांस रै
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
वोटां री मसीनां सूं
बण्यौ मंतरी,
केई पीढयां तार देवै!
जात रै जबकै अधबुढो
राज री चाकरी री वार चढै
मर ज्यावै अेकर तो
बेटा जी फैरूं असवार बणै।
इतरी आजादी इण राज में
फैर क्यूं कसमसावै रै?
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?
इयां डरती जै मांवा थांरी
कूख कियां हरी व्हैती रै?
जै डरतो बीकाण राव कर्णसिंघ
सनातन धरम धुप ज्यांतौ।
जै डरतो महाराणा प्रताप
जगत सूं सुरापण मिट ज्यांतो।
जै हाकम सूं डरतो पिरथीराज
जगत में प्रताप रौ नांव
खोटो व्है ज्यांतौ।
जै डरतो भगत सिंघ
राज ब्रिटानियां कींकर हिलतो रै?
जै डरतो सुभास बाबु
गोरां री मनचाही व्है जाती।
वै डिगया नीं जद गोरां रै सांमी
थै इण छक्कां सूं क्यूं
आंख लुकावौ रै?
इत्ता निबळा क्यूं हुग्या,
क्यूं थारी गोमा गाजै रै?


विनोद सारस्वत, बीकानेर




राजस्थान रा लूण हराम

इयूं तौ आखै आर्याव्रत मांय थांनै लूण हरामीयां रा घणां नांव मिळै ज्यूं कै आमेर रौ राजा मानसिंघ इत्याद. पण अठै आपां बात करां लारला 100 सुं 150 बरसां मांय राजस्थान रै सागै लूण हरामी करण वाळा भारत रै इतिहास मांय महान गिनीजन वाळा लोगां री. आ बात तौ सगळा जाणै कै भारत सरकार री पोथीयां मांय छत्रपती शिवाजी नै त्रासवादी अर अकबर नै महान केवीजै.
आवां आपां जाणा अबार रा लूण हरामी. थोड़ा घणा तौ राजस्थान रा पण दूजा अेड़ा जिणा रौ राजस्थान सूं कांई लेणौ देणौ कोनीं पण लूण हरामी करण मांय सगळां नै लारै बैठावै. माफी चावूं सगळां सूं क्यूं कै थे अबार घणकरा अेड़ा नांव सुणौला ज्यांरी थे सुपणां मांय ईं कळ्पणा नी कर सकौ, पण हकीकत बतावणी म्हारौ फरज समझू, घणी खम्मा सा :
  • पं. मदनमोहन मालविय : अचुम्भौ हुवै ? पण हकीकत आ कै पंडितजी बिकाणै (बिकानेर) अर जोधाणै (जोधपुर) रा घणा आंटा मार्‌या अर महाराजा गंगासिंघजी अर महाराजा उमेदसिंघजी सूं काशी हिंदू विश्वविद्यालय मांय राजस्थानी भासा रौ डिपार्टमेंट खोलण रै नांव पर खासा पईसा लूंटिया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय तौ बण्यौ पण राजस्थानी रै वास्तै डिपार्टमेंट तौ कांई इणरौ नांव कै इतिहास ईं दुर-दुर तांई निंगे नीं आवै.
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल : सरदार जी रौ राजपुताना मांय घणौ आवणौ जावणौ रेवतौ. महाराजा उमेदसिंघजी अर गंगासिंघजी जैड़ा दान दाता जकौ बैठ्या हा. कोंग्रेस पार्टी रै वास्तै घणा रुपिया भीख मांय ले जावता. राजपुतानै री आजादी अर इणरी भासा-संस्क्रती री रखवाळी रौ आश्वासन ईं पटेल साब दे ग्या हा. भारत सूं अंगरेजां रै जावता ईं हाथ में दिल्ली री सत्ता मिळ्ता ई असल रंग दिखावणौ चालु कर्‌यौ. पटेल साब घणी कोशिश करी अर अेकवार तौ सिरोही जिल्ला नै गुजरात मांय लेग्या. सिरोही री पिरजा रै विरोध रै बावजुद अंबाजी गुजरात में राख’र आबू तक रौ हिस्सौ राजस्थान नै दियौ अर हर संभव कोशिश करी कै आबु नै गुजरात मांय ले लेवै. गुजरात मांय खुद री मायड़भासा गुजराती रा हिमायती बण्या रह्‌या अर राजस्थानी री राष्ट्रवाद अर देशहित रै नांव पर बळी लेवण मांय पटेल रौ हाथ सबसूं आगै है.
  • इंदिरा गांधी : भारत री प्रधानमंत्री बण’र इण पद रौ घणौ गळत फायदौ उठायौ महाराणी इंदिरा गांधीजी. भारत मांय इमरजेंसी रै लगा’र तानाशाही राज चलावण वाळां मांय हालतांई फक्त अेक नांव आवै अर वौ नांव इंदिरा गांधी रौ. राजपुताना अर देस रै दूजा राज्यां रौ जद भारत मांय विलय कर्‌यौ उण बखत रा विलय पत्र माथै साफ लिख्यौ हौ कै ना तौ भारत सरकार अर ना ईं उण राज्य रौ प्रमुख (राजा) या उणरा उत्तराधिकारी इण विलय पत्र मांय कोई फेर बदळ कर सकै. लोकतंत्र आया पछै ईं हर जागा पिरजा खुद रै राजा नै बोट देवती आज ईं अेड़ा उदारण देखण मांय आवै, ज्यूं कै ग्वालियर, बिकाणौ, जोधाणौ. जद गायत्री देवी री एतिहासिक जीत गीनिज बुक ओफ वर्ल्ड रिकोर्ड मांय आयी तौ इंदिरा गांधी रातौ रात संविधान मांय फेर बदळ करनै सगळा राजावां सू वांरी पदमी, प्राविपर्स सै की खोस लिया. राजपरिवार रै म्हैला उपर छापा नाख’र खजाना लुटिया अर वौ खजानौ कठै गयौ हाल तांई कोई हिसाब कोनीं. अगर विलय पत्र मांय साफ लिख्यौ है कै इण मांय कोई फेरबदळ नीं कर सकै तौ इंदिरा गांधी कुण हुवै फेरबदळ करण वाळी. इंदिरा गांधी री लुण हरामी इतिहास मांय भारत री राजस्थान रै पुठ मांय खंजर मारण वाळी बात रै रुप मांय हमेश जाणीजैला.
  • स्वामी दयानंद सरस्वती : स्वामीजी मूळ रुप सूं गुजराती हा. गुजरात मांय बापड़ौ री दाळ गळी कोनीं अर बार-बार मारवाड़ नरेश रा पांवणा बण’र जोधाणै पुंग जावता. हिंदी रा खासा हिमायती हा अर राजस्थानी रा विरोधी. स्वामीजी गुजरात वाळौ नै तौ हिंदी रौ पाठ पढा कोनीं सक्या पण जोधपुर नरेश सुं हमेश हिंदी नै राजभासा बणावण री वकालत करता रेवता. आखर इण खोटा करमां रै कारण इयूं केविजै के जोधाणै मांय स्वामीजी नै ज्‍हैर देरीजियौ. आज स्वामीजी रा चमचा (चेला) आर्य समाज रै नांव माथै राजस्थानी भासा रै विरोध रौ आंदोलण छेड़ राख्यौ है.
  • जयनारायण व्यास : व्यास जी मारवाड़ राज्य रा प्रधानमंत्री हा. इयांनै प्रधानमंत्री पद ओछौ लागतौ अर एकरकी महाराजा हनवंतसिंघ नै केवै ”बापजी, आप घणौ राज कर्‌यौ इब म्हानै करण दौ”. मारवाड़ रा अे प्रधानमंत्री कोंग्रेस री बातां मांय आय’र खुद रै राज्य सूं लूण हरामी करी अर आखै राजपुतानै रा प्रधानमंत्री बणन रा सुपणा देखण लागा. आ बात न्यारी है कै पेला चुणावां मांय इणांरी जमानत जब्त व्हेगी ही. मारवाड़ राजघराणै सूं संबध राखण वाळा लोग आज ईं आ बात मानै कै महाराजा हनवंतसिंघजी री अपघात मौत मांय व्यासजी रौ हाथ है.!
  • सिंधी समाज : भारत पाकिस्तान रा जद भागला पड्या तौ सिंधी हिंदू समाज नै सिंध छोड़णौ पड़्यौ. पंजाब अर बंगाळ रै ज्यूं सिंध रा दो टुकड़ा नीं करिज्या अर सिंधी समाज रै कनै माथौ ढाकवा नै ईं जगा नीं बची. अेड़ा समै में मारवाड़ नरेश महाराजा हनवंतसिंघजी अर बकनर नरेश महाराजा सार्दुल सिंघजी आगे आया अर सिंधी समाज नै आसरौ दियौ. इण समाज नै राजपुतानै री मारवाड़ रियासत अर बीकानेर रियासत में रेवण नै घर गुवाड़ी अर बिणज वौपर रै वास्तै पुरौ सैयोग राज सूं मिळ्यौ. इण पछे ऐ आज रे राजस्थान में ठोड-ठोड पसरग्या ने आपरो जाचो ज़चा लियो ने लारै जाय’र इण समाज री युनिवर्सिटी अर पोसाळां बणावण वास्तै ईं पुरौ सैयोग दियौ. इण समाज री भासा अर संस्क्रती री रिछपाल करण में राजस्थानी समाज हमेश आगे रैयौ है. इब इण समाज री लूण हरामी आ कै औ समाज राजस्थानी भासा संस्क्रती री रिछपाल री जदै ईं बात निकळै उण समै खुद री टांग सैं सूं पैली अड़ावै. औ समाज आ बात समझण री कोशिश नी करै कै जद सिंध सूं आया उण समै अठै आय’र हिंदी सिखी व्यूंईं राजस्थानी ईं सिखी. सिंध पाकिस्तान मांय रेवण वाळा राजस्थानी भासी ईं हमेश सिंधी नै मान संम्मान दियौ है.

हाल ईं घणां दूजा नांव है, पण फेरू कदै.

जै राजस्थान! जै राजस्थानी!!

- हनवंतसिंघ राजपुरोहित

आ लोगां सूं ना राखो राजस्थानी मानता आन्दोलन में आवण री आस

आ लोगां सूं ना राखो राजस्थानी मानता आन्दोलन में आवण री आस

अजय कुमार सोनी 'मोट्यार'  

राजस्थानी नै मानता दिरावा खातर आज घणा लोग आगै आय रिया है, पण राजस्थानी रा लून्ठा अर समृद्ध साहित्कार लोग आगै तो आय रिया है, पण किण वास्तै? कदी सोच्यो? ऐ आय रिया है राजनीति, नाम खातर. राजस्थान में राजस्थानी नै मानता दिरावा वाला घणा लोग है पण म्हें इश्या लोग कदी नी देख्या. सब रा सब राजस्थानी पुरस्कार, नाम खातर आगै आवै. म्हें आपनै एक तकड़ी बात बताऊँ कै राजस्थानी रा आगिवाण श्री कमल जी रंगा (बीकानेर), आं रै भाई रो बीकानेर में एक स्कुल है. बठै एक खाश बात है कै ऐ लोग कोई भी टाबर नै राजस्थानी नी बोलण देवै. जे कोई उण स्कुल में राजस्थानी बोल भी गयो तो जुर्मानो भरणो पडसी. ऐ लोग फेर क्यूँ मान्यता री बात करै. ऐ लोग टाबरां नै राजस्थानी नीं बोलण देवै. एक उदाहरण ओर देवूं. म्हारै अठै एक स्कुल है, बीं में अंग्रेजी माध्यम सूं पढाई करवाई जावै है. बठै शिक्षा देवै कै "घर पर अंग्रेजी में बात किया करो", बां लोगां नै केवा वालो होणो चाईजे कै दादा-दादी नै पेली अंग्रेजी सिखाओ फेर अंग्रेजी में बात करो. कमल जी रंगा रा पिता जी श्री लक्ष्मी नारायण जी रंगा भी कीं कम नीं है. एल. पी. टेस्सितोरी री समाधि पर बोलण लाग रिया हां. बो भी हिंदी में, बाद में पुछ्यो तो बोल्या कै भाई ३५ साल हिंदी री रोटी खाई है. हिंदी नै कुकर छोड़ देवां. टेस्सितोरी राजस्थानी खातर इत्तो काम कार्यो, विदेशी हा तो भी. राजस्थानी रा एक ओर साहित्कार है जिका अपनै आप नै राजस्थानी आन्दोलन रा संस्थापक अर प्रदेशाध्यक्ष बतावै. बां रो नांव थे ही बताओ कै बे कुण है. राजस्थानी री रोटी खावै अर गुण गावै किणी ओर रा. मालचंद जी तिवाड़ी, सी पी देवल, बिज्जी जिस्या लोग आज नांव रा भूखा रैग्या है. आं लोगां चायो कै आपणों नांव टीवी, अखबार अर लोगां रै मुख ताई आवणों चाईजे पण इणी मुख सूं राजस्थानी जनमानस थानै गाळ काढै. गळती करग्या राजस्थानी लोग. राजस्थान पत्रिका जकी राजस्थान री रोटी खावै, अठै रो रिपियो लूटै अर हाजरी बजावै दूजी भाशावां री. राजस्थानी री कोई बात छापा रो केयो तो संपादक महोदय बोल्या कै "हम न तो राजस्थानी के पक्ष में छापेंगें और न ही विपक्ष में", थे लोगां पेली छाप दियो विपक्ष में अब क्यामी पक्ष में छापस्यो. भारत में जित्ता भी अंग्रेजी अखबार छपे, वा रा धणी राजस्थानी लोग है पण ऐ लोग कदी राजस्थानी खातर नीं बोलै. आं सारा लोगां नै रिपिया चाईजे, माँ नीं. आपां किण लोगां सूं राजस्थानी मानता री आस राखां. ऐ लोग सिर्फ अर सिर्फ नांव रा भूखा है. आं लोगां नै शर्म नीं आवै. ऐ राजनीति करणी जाणे. कई लोगां रा नांव इण भान्त है जिका राजस्थानी रा साहित्कार श्री ओम पुरोहित 'कागद' जी उपलब्ध कराया है. जका बतावे कै जे ऐ लोग १० दिन कारोबार बंद कर देवै तो मान्यता तैयार है. 

1 सिँघाणियां ग्रुप
2बांगड़ ग्रुप
3मोदी ग्रुप
4 बिड़ला ग्रुप
5केड़िया ग्रुप
6 बिहाणी ग्रुप
7 थिराणी ग्रुफ
8मुरारका ग्रुप
9पौद्दार ग्रुप
10डालमियां ग्रुप
11 बज़ाज ग्रुप
12 लखोटिया ग्रुप
13 सर्राफ ग्रुप
14मील ग्रुप
15बीका जी भुजिया
ऐ इत्ता इ लोग काफी है.........

तो म्हारी आपसूं अर्ज है कै इसा लोगां नै राजस्थान में रे'र राजस्थानी रो नांव ख़राब करण री जरुरत कोनी. आ लोगां नै केवो यूपी, बिहार में जाय'र रेवा लाग ज्यो.

जय राजस्थान!
जय राजस्थानी!!

बिन भासा बिन पाणी बिलखै राजस्थानी!


राजा जी, थांरै राज में बिन भासा बिन पाणी,
बिलखै राजस्थानी!
जिका सांपा नैं दूध पायौ हौ
वै आज फण उठावै है!
नित नूंवी कर कुचमाद~यां थांरी,
मायड़ भासा पर आंगळी उठावै है!
घर रा पूत तो कंवारा डोलै!
दूजां री क्यूं फुलड़ा सैज सजावौ हौ?
घर रा टाबरिया रोटी नैं तरसै,
दूजां नै मालपुवा क्यूं पुरसावौ हौ?
रोळ राज में तळै बेठगी भासा संस्कृति,
क्यांरी कुड़ी बिड़द बंचावौ हौ?
कक्कौ कोडको, मम्मा मौरी माय अै
गगा गौरी गाय अे, घाट पिलाणै जाय अे।
अेके-अेक दूवै-दो, अेके मिंडी दस,
तीये मिंडी तीस, पांचूड़ी पच्चीस।
छिनूड़ै री चौपन, बारम बार चमाळसो।
कठै गयी बा मारणी,
कठै गमग्या बै ढूंचा प्हाडा?
कठै गया बै मारजा,
कठै गई बै पोसाळांं?
इण भणाई सूं पांचवी पढयोड़ा
बडां बडां रा गोडा टिकावै है।
रोळ राज रा बीए एमए,
छोटी-छोटी गिणत्यां में अरड़ावै है।
कूड़-कपटियै इण राज में
भणाई भेळी व्हैगी।
गरूजी गरूजी नीं रैया,
नोट छापण री मसीन बणग्या।
चोटी करती चमचम
विद्या  आंवती घमघम।
विद्या री देवी रूसगी रोळ राज में,
कुण हालरिया हुलरावै?
कुण साची सीख देवै,
कुण मरण बडाई रौ पाठ पढावै?
बापड़ी बणगी रजपूती
जणौ-जणौ आंख दिखावै।
रोळ राज रा राजा बण
क्यूं इतरा फनफनावौ हौ?
राहुल-सोनिया रै दरबार में भर हाजरी।
वांरा गुण-बखाण भाटां ज्यूं
क्यूं बिड़दावौ हौ?
कठै गई थारी बै जादू री काम्ड़ियाँ {छड़ियां}
क्यूं वांरी हां में हां मिलावौ हौ?
मायड़ भासा बोलतां थारी जीभड़ली
क्यूं हिचकावै है?
ओप री भासा में भासण झाड़-झाड़
क्यूं कुड़ी मौद मनावौ हौ?
मायड़ लाजां मरै इसड़ै पूतां पर
क्यूं, लाखीणी साख गमावौ हौ?
सौ क्यूं देख रह~या निजरां सूं,
फैर, माथै में क्यूं धूड घालौ हौ?
राज-काज संभै कोनी,
जद क्यां तांणी तड़फा तोड़ौ हौ?
साचै गरू सूं लेय सीख,
भगवां क्यूं नीं धारौ?
विनोद सारस्वत,
बीकानेर

राजस्थानी रचनाकारां सारू सूचना

राजस्थानी रचनाकारां सारू सूचना

राजस्थानी जन-जन ताईं पूगै इण सारू बोधि प्रकाशन पुस्तक पर्व योजना रै तै'त 'राजस्थानी साहित्य माळा' छापण री तेवड़ी है। इण योजना में राजस्थानी रा दस रचनाकरां री एक-एक पोथी रो सैट ऐकै साथै प्रकाशित होय सी। ऐ दस पोथ्यां कहाणी, नाटक, एकांकी, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य, रेखाचित्र, निबंध, कविता, गज़ल आद विधा में होय सी। साफ है एक विधा में एक टाळवीं पोथी। कुल दस पोथी रै एक सैट री कीमत 100/- (सौ रिपिया) होय सी। इण पोथी माळा रो संयोजन राजस्थानी रा चावा साहित्यकार श्री ओम पुरोहित 'कागद' नै थरपियो है।

योजना में सामल होवण सारू 15 मई, 2010 तक इण ठिकाणै माथै रुख जोड़ो-

श्री ओम पुरोहित 'कागद'
24, दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम-335512
खूंजै रो खुणखुणियो : 9414380571

बोधि प्रकाशन
एफ-77, सेक्टर-9,
रोड नं.-11, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया,
बाईस गोदाम, जयपुर