भाई ओम जी पुरोहित ’’कागद’’ अेक दम साची बात लिखी है अे वै लोग है जिका राजस्थानी रा लूंठा माण-सम्मान, पुरस्कार पायौड़ा नैं राज री गिदी माथै बिराजणिया अर वै उधोगपति है जिणां री पिछाण ही इण भासा सूं जुड़यौड़ी है। अे सगळा आमरण अनसन पर बैठ जावै तो फौड़ा ही कांई चीज रा? पण म्हैं समझूं कै इण लोगां नैं अबै इण री कोई जरूत कोनी। इण सगळां लोगां इण भासा रै पाण आप री वैतरणी पार करली। इणा भासा री राजनीति कर ली सगळा माण-सम्मान आप रै गोझै में घाल लिया। चोखलै में आप री धन धन करवाय ली।
सैसूं पैली हिन्दी रै आगे टंटाटैर हुवणिया भी अे ईज लोग है। ‘‘गरज मिटी नैं गूजरी नटी’’। सो भाई ओम जी, इण लोगां री गरज पूरी होयगी अबै इणा नैं इण भासा संस्कृति सूं कीं लेणौ-देणौ कोनी। अे वै चिकणा घड़ा है, चिकणै घड़ै पर जदि छांट रौ असर व्है तो इण लोगां पर भी व्है। राजस्थानी रा अे मोटा माण-सम्मान पावणिया लोगां रै बारै में म्हैं 1996 में ‘मायड़ रो हेलो’ में अेक संपादकीय लिख्यौ हौ-’’नीं धो सकोलो, हाड-हराम रौ काळास’’।
जिका उधोगपतियां नै गढपतियां रौ आप नांव लिख्यौ है तो सुणौ सैसूं पैली रोळ-राज रै आगे अे लोग ही टंटाटैर व्हिया हा, आजादी रा बीन अे ईज बण्या हा अर भासा री मोत रै परवांणै पर इण लोगां ही आप री छाप लगाई ही अर हिन्दी रा अखबार निकाळ नैं इण लोगां ही भारत री सरकार साथै सीर री दुकान सजाई ही। सो इण लोगां सूं आ आस करणी विरथा है, अबै तो दूंवौ जोस, नूंवी आजादी रा सपना देखणिया लोग ही कीं कर सकै नीं तो राम ही रूखाळौ है।
विनोद सारस्वत,
बीकानेर
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