रंगीलो राजस्थान

रंगीलो रास्था

राजस्थान रंगीलो प्रदेस। राजस्थान नै परम्परागत रूप सूं रंगां रै प्रति अणूंतो लगाव। सगळी दुनिया रो मन मोवै राजस्थान रंग।
बरसां पैली नेहरूजी रै बगत नागौर में पंचायत राज रो पैलड़ो टणको मेळो लाग्यो। २ अक्टूबर, १९५९ रो दिन हो। राजस्थान रा सगळा सिरैपंच भेळा हुया। नेहरूजी मंच माथै पधारिया तो निजरां साम्हीं रंग-बिरंगा साफा रो समंदर लहरावतो देख'र मगन हुयग्या। रंगां री आ छटा देख वां री आंख्यां तिरपत हुयगी। मन सतरंगी छटा में डूबग्यो। रंगां रै इण समंदर में डूबता-उतरता गद्-गद् वाणी में बोल्या- ''राजस्थान वासियां! थै म्हारी एक बात मानज्यो, आ म्हारै अंतस री अरदास है। वगत रा बहाव में आय'र रंगां री इण अनूठी छटा नै मत छोड़ज्यो। राजस्थानी जनजीवण री आ एक अमर औळखांण है। इण धरती री आ आपरी न्यारी पिछाण है। इण वास्तै राजस्थान रो ओ रंगीलो स्वरूप कायम रैवणो चाइजै।''
राजस्थानी जनजीवण रा सांस्कृतिक पख नै उजागर करता पंडतजी रा ऐ बोल घणा महताऊ है। 'रंग' राजस्थानी लोक-संस्कृति री एक खासियत है। अठै कोई बिड़दावै, स्याबासी दिरीजै तो उणनै 'रंग देवणो' कहीजै- 'घणा रंग है थनै अर थारा माईतां नै कै थे इस्यो सुगणो काम करियो।' अमल लेवती-देवती वगत ई जिको 'रंग' दिरीजै उणमें सगळा सतपुरुषां नै बिड़दाइजै।
राजस्थान री धरती माथै ठोड़-ठोड़ मेळा भरीजै। आप कोई मेळै में पधार जावो- आपनै रंगां रो समंदर लहरावतो निगै आसी। लुगायां रो रंग-बिरंगा परिधान आपरो मन मोह लेसी। खासकर विदेसी सैलाणियां नै ओ दरसाव घणो ई चोखो लागै। इण रंगां री छटा नै वै आपरै कैमरां में कैद करनै जीवण लग अंवेर नै राखै।
राजस्थानी पैरवास कु़डती-कांचळी अर लहंगो-ओढणी संसार में आपरी न्यारी मठोठ राखै। लैरियो, चूंनड़ी, धनक अर पोमचो आपरी सतरंगी छटा बिखेरै। ओ सगळो रंगां रो प्रताप।
इणीज भांत राजस्थानी होळी एक रंगीलो महोच्छब। इण मौकै मानखै रो तन अर मन दोन्यूं रंगीज जावै। उड़तोड़ी गुलाल अर छितरता रंग एक मनमोवणो वातावरण पैदा करै। रंगां रो जिको मेळ होळी रै दिनां राजस्थान में देखण नै मिलै, संसार में दूजी ठोड़ स्यात ई निजरां आवै।
मानवीय दुरबळतावां रै कारण साल भर में पैदा हुयोड़ा टंटा-झगड़ा, मन-मुटाव अर ईर्ष्या-द्वेष सगळा इण रंगीलै वातावरण में धुप नै साफ होय जावै, मन रो मैल मिट जावै।
इण रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी रै मंगळ मौकै आपां नै आ बात चेतै राखणी कै वगत रै बहाव में आय'र भलां ई सो कीं छूट जावै पण आपणी रंग-बिरंगी संस्कृति री अनूठी छटा बणायां राखणी।

कंवल उणियार रो लिखियोड़ो दूहो बांचो सा!

चिपग्या कंचन देह रै, कपड़ा रंग में भीज।
सदा सुरंगी कामणी, खिली और, रंगीज।।
 
 
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1 टिप्पणी:

  1. बेटा अजय,
    जीँवता रै'वो!
    थारो काम तो जबरो है !रांधण भी जोरदार रांध्यो है।पण रंधीण सूं कीँ कांकरा चुगल्यो।
    *म्हारा मोबाइल नम्बर खोटा छाप्या है लाडी !
    *भगवती पुरोहित री तीन पोथ्यां है
    1मरुधर रा गीत
    2धरती रा गीत
    3मांडणा कला
    *प्रवीण पुरोहित री 2 पोथ्यां है
    1 मौनू की सूझ
    2शैतान का अंत
    *हनुमान दीक्षित निशांत
    सीमांत
    गुरदीप सोहल
    महेश संतुष्ट
    नरेश मेहन
    नरेश विद्यार्थी
    मुखराम माकड़
    गोविंद शर्मा
    राम सिँह अतुल
    फूल सिँह अक्कू
    दीपावली जोशी
    रूप सिँह राजपुरी
    भूरसिँह राठौड़
    किशन कुमार कौशिक
    राम कुमार औझा
    लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत
    मोहन योगी
    राजू सारसर
    किशन बांदर
    पवन शर्मा
    गोपीकिशन दादा
    दौलतराम डोटासरा
    बी एल सहू
    बलदेवराज शर्मा
    मंगतसिँह
    मायामिरग
    अलीम भाई राही
    देवेन्द्र बिमरा
    बी एम बंधू
    शेर सिँह तूर
    निर्मल सिँह निर्मल
    नथगिर भारती
    बिसना राम
    जितेन्द्र सोनी
    लीला शर्मा
    गुरदीप सोहल
    रामेश्वर गोदारा
    जसवंत स्वामी फेफाणा
    हरबंश सिँह
    सुंदरम
    राजेश चड्ढा
    आद आपणै ई जिलै रा लिखारा है।म्हारै सूं ई घणां ई नाम छूट्या है।
    फेफाणां मेँ कई लिखारा है जकां री पोथ्यां छप्योड़ी थकी है।

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