अठै की नीं आणी-जाणी छै।

अठै की नीं आणी-जाणी छै।

बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।

व्है छै कीं उठै, जठै भाला भळ-भळता व्है।

भर काळजे बारूद, घूमतो हरेक जोध व्है।

बात साटै सिर देवण नैं तातो कुंचो-कुंचो व्है।

जठै अन्याव रै सांमी लड़-भिड़णो ही धर्म व्है।

इसड़ै जोधां रै सांमी लुळ्यो, जमानो छै।

पण बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।

विनोद सारस्वत (बिकाणो)

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